Front Desk Architects and Planners Forum
तत्वार्थ सुत्र अध्धाय ३ सुत्र सुत्र १६ से २२ तक - Printable Version

+- Front Desk Architects and Planners Forum (https://frontdesk.co.in/forum)
+-- Forum: जैन धर्मं और दर्शन Jain Dharm Aur Darshan (https://frontdesk.co.in/forum/forumdisplay.php?fid=169)
+--- Forum: Jainism (https://frontdesk.co.in/forum/forumdisplay.php?fid=119)
+--- Thread: तत्वार्थ सुत्र अध्धाय ३ सुत्र सुत्र १६ से २२ तक (/showthread.php?tid=2028)



तत्वार्थ सुत्र अध्धाय ३ सुत्र सुत्र १६ से २२ तक - scjain - 02-09-2016

प्रथम पद्म सरोवर की गहराई -

दशयोजनावगाह:-१६
संधि विच्छेद -दश+ योजन+आवगाह:-
शब्दार्थ -दश+दस, योजन-महा योजन ,आवगाह:- गहरा है 
अर्थ -पद्म सरोवर १० महायोजन गहरा है 
तन्मध्येयोजनंपुष्करं -१७ 
संधि विच्छेद तन्मध्ये+योजनं+पुष्करं-
शब्दार्थ-तन्मध्ये-उस के बीच में, योजनं-१ योजन ,पुष्करं -विस्तार का कमल है  !
अर्थ -पद्म सरोवर के मध्य १ योजन विस्तार का कमल है!
नोट यह कमल वनस्पतिकाय नहीं बल्कि पृथिवीकाय है अर्थात पृथिवी कमलाकार है !
इसके अतिरिरिक्त इसके आधे विस्तार के १४०१२५ कमल भी है जिनमे देवो का निवास है !
तद्द्विगुणद्विगुणहृदाःपुष्कराणिच ॥१८!!
संधि विच्छेद -तद् +द्वि+गुण+ द्वि+गुण+हृदाः+पुष्कराणि+च
शब्दार्थ-तद्-उस (पद्म  सरोवर और कमल से ) से, द्विगुण-दुगने  द्विगुण-दुगने, हृदाः-सरोवर,पुष्कराणि-कमल, च-और है 
अर्थ- पद्म सरोवर से आगे के सरोवर और कमल दुगने दुगने विस्तार के   है अर्थात महापदम सरोवर २००० महा योजन लम्बा १००० महायोजन चौड़ा २० योजन गहरा, कमल २ योजन विस्तार का तथा तिगिंछ  सरोवर ४००० महायोजन  लम्बा २००० महायोजन चौड़ा और ४० महा योजन गहरा है ,कमल ४ योजन उत्सोध है !
नोट यह दूने दूने  का क्रम  केवल तिगिन्छ सरोवर तक  ही है !उसके बाद के तीन सरोवर और ३ कमल का विस्तार दक्षिण के सरोवर और कमल के समान ही है !
[Image: 00530.jpg]


पद्म सरोवर एवं उसके मध्य स्थित कमल-
पद्म सरोवर के मध्यस्थ  १ योजन चौडा पद्म  कमल है !उसमें  चारो ओर एक कोस लम्बे ,२ कोस मोटे रजतमय ११११ पत्ते है !उसके मध्यस्थ २ कोस चौड़ी स्वर्णमयी कर्णिका है!४२ कोस ऊंची इसकी नाल ४० कोस जलमग्न और २ कोस ऊपर  है !इस कमल की आधी ऊंचाई के  १ कोस ऊँचे १,४०,११५ छोटे कमल जल से ऊपर है जिनमे श्री देवी के  परिवार रहते है !ये पृथ्वीकाय कमल है वनस्पतिकाय नही है !=

कमलो पर निवास करने वाली देवियाँ-
 तन्निवासिन्योदेव्यःश्रींहृींधुतिकीर्तीबुद्धिलक्ष्म्यःपल्योपमस्थितयःससमा- निकपरिषत्काः ॥१९॥
 संधि विच्छेद -
तत्+निवासिन्य:+देव्यः+श्रीं+हृीं+धुति+कीर्ती+बुद्धि+लक्ष्म्य:+पल्योपम+स्थितयःस+समानिक+परिषत्काः ॥१९॥
शब्दार्थ-
तत्-उन पर,निवासिन्य:-निवास करती है,देव्यः-देवियान-श्रीं,हृीं,धुति,कीर्ती,बुद्धि,लक्ष्म्यः-लक्ष्मी, पल्योपम- १ पल्योपम ,स्थितयः-आयु वाली ,स-साथ ,समानिक-समानिक और परिषत्काः-परिष्तक जाति के देवो  के 
अर्थ-,उन (पद्म ,महापद्म तिगिच्छ,केशरि, महापुण्डरीक,पुण्डरीक) सरोवरों  के कमलो (की कर्णिकाओं) पर  स्थित महलों में  १ पल्योपम आयु वाली देवियाँ  क्रमश:श्रीं,हृीं,धुति,कीर्ती,बुद्धि और लक्ष्मी समानिक और  पारिषद  जाति  के देवों  के साथ रहती है !
नोट-१-यह देवियाँ सामयिक जाति ,पिता तुल्य  व्यंतर और पारिषद जाति  के ,मित्र तुल्य देवों की देवियाँ होती है!ये ब्रह्मचारिणी होती है!उनकी पत्नीरूप नहीं होती ;तीन देवियाँ सौ धर्मेन्द्र की और तीन देवियाँ ऐशान  इंद्र की आज्ञा का पालन करती है !
जम्बू द्वीप में प्रवाहित होने वाली नदियां -

नदियों का वर्णन -
गंगासिंधुरोहिद्रोहितास्याहरिद्धरिकान्तासीतासीतोदानारीनरकान्तासुवर्णरूप्यकूलारक्तारक्त्तोदाः सरितस्तन्मध्यगा:-२०
संधिविच्छेद:-गंगा+सिंधु+रोहित्+रोहितास्या+हरित्+हरिकान्ता+सीता+सीतोदा नारी+नरकान्ता सुवर्णकूला  + रूप्यकूला+रक्ता+रक्त्तोदाः सरित:+ तन+ मध्यगा:
शब्दार्थ-
गंगा+सिंधु,रोहित+रोहितास्या,हरित+हरिकान्ता,सीता+सीतोदा,नारी+नरकान्ता,सुवर्णकूला +रूप्यकूला, रक्ता+रक्त्तोदाः सरित:-नदिया,,तन-उन (क्षेत्रों ),के,मध्यगा-मध्य  में बहती  है 
भावार्थ :-जम्बू द्वीप के  भरत,हेमवत,हरि,विदेह,रम्यक,हैरण्यवत और ऐरावत क्षेत्रों   में क्रमश: गंगा सिंधु,रोहित-रोहितास्य ,हरी-हरिकान्ता,सीता-सीतोदा,नारी-नरकान्ता,सुवर्णकूला-रूप्यकूला, और रक्ता-रक्त्तोदाः सात नदियों  के  युगल  बहते  है ! इनमे से पहली नदी पूर्व क्षेत्रों में बहती हुई पूर्व  तथा दूसरी नदी पश्चिम क्षेत्रों से बहती हुई पश्चिम लवण  समुद्रो में गिरती है !
विशेष -
-भरतवर्ष में गंगा और  सिंधु,हेमवत् वर्ष  में  रोहित और रोहितास्य ,हरि वर्ष  में हरित और हरिकान्ता , विदेहवर्ष  में सत्ता और सितोदा ,रम्यकवर्ष  में नारी और नरकान्ता ,हैरण्यवत वर्ष  में सुवर्णकूला और रूप्यकूला  तथा ऐरावतवर्ष  में रक्त और रक्तोदा नदिया बहती है !सात  युगल  की  प्रथम नदी पूर्व दिशामें बहती हुई पूर्व लवण समुद्र में और दूसरी नदी इन क्षेत्रों की पश्चिम दिशा में बहती हुई  पश्चिम  लवण समुद्र में गिरती है ! 
२-हिमवन पर्वत पर स्थित पदम सरोवर से गंगा,सिंधु और रोहितस्या ,महाहिमवन पर्वत पर स्थित महापदम सरोवर से रोहित और हरिकांत, निषध पर्वत पर स्थित  तिगिच्छ सरोवर से हरित और सीतोदा, नील पर्वत पर स्थित केशरी  सरोवर से सीता और नरकांता  ,रुक्मी पर्वत पर स्थित महापुण्डरी से नारी और रूप्यकूला तथा शिखरिन पर्वत पर स्थित  पुण्डरीक सरोवर से 
सुवर्णकूला ,रक्त और रक्तोदा नदिया निकलती है!
३-पद्म ,महापद्म,तिगिच्छ ,केशरी ,महापुण्डरीक ,पुण्डरीक सरोवर की लम्बाई चौड़ाई गहराई क्रमश १००० x ५०० x १०,२०००x १०००  x २०,४००० x २००० x ४० ,४००० x २००० x ४०,२०००x १०००  x २०,१००० x ५०० x १० महा योजन है 

७ क्षेत्रों की पूर्व दिशा में बहने  वाली महा  नदिया
द्व्यो र्द्व्योःपूर्वाःपूर्वगाः ॥२१॥
शब्दार्थ-द्व्यो र्द्व्योः दो दो नदियों के युगल  में से,पूर्वाः-पहली -पहली ,पूर्वगाः-पूर्व समुद्र की ओर जाती है 
भावार्थ -भरत,हेमवत्,हरी,विदेह,रम्यक औरहैरण्यवत्, ऐरावत सात क्षेत्रों में क्रमश: बहने  वाली महा नदियों के युगलों ;गंगा-सिंधु,रोहित-रोहितास्य ,हरी-हरिकांता,सीता-सीतोदा ,नारी-नारिकांता,स्वर्णकूला-रूप्यकूला, रकता-रक्तोदा में से पहली पहली महानदिया;गंगा,रोहित्.हरि,सीता,नारी,स्वर्णकूला और रक्ता   पूर्व दिशा   के समुद्र में मिलती है ! 
७-क्षेत्रों की पश्चिम दिशा में भने  वाली महा नदिया 
शेषास्त्वपरगाः ॥ २२॥
-संधि विच्छेद -शेषा:+त्व +अपरगाः  
शब्द्दार्थ -शेषा:-बची हुई ,त्व -उनमे अपरगाः-विपरीत दिशा अर्थात पश्चिम दिशा में समुद्र में मिलती है !
भावार्थ -भरत,हेमवत्,हरी,विदेह,रम्यक और हैरण्यवत्, ऐरावत सात क्षेत्रों में क्रमश: बहने  वाली  महा  नदियों के युगलों;गंगा-सिंधु,रोहित-रोहितास्य ,हरी-हरिकांता,सीता-सीतोदा ,नारी-नारिकांता,स्वर्णकूला-रूप्यकूला,रकता-रक्तोदा  में से पहली पहली महानदिया;गंगा,रोहित्,हरि,सीता,नारी,स्वर्णकूला और रक्ता के अतिरिक्त शेष अर्थात महानदियों के युगलों की दूसरी दूसरी महानदियां सिंधु,रोहितास्या,हरिकांता, सितोदा,नारीकांता,रूप्यकूला और रक्तोदा पश्चिम दिशा के समुद्र में मिलती है !



RE: तत्वार्थ सुत्र अध्धाय ३ सुत्र सुत्र १६ से २२ तक - Manish Jain - 06-13-2023

अधिक जानकारी के लिए.... 
तत्वार्थ सूत्र (Tattvartha sutra)
अध्याय 1 
अध्याय 2
अध्याय 3
अध्याय 4
अध्याय 5
अध्याय 6
अध्याय 7
अध्याय 8
अध्याय 9
अध्याय 10