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उत्तम तप धर्म - Printable Version

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उत्तम तप धर्म - scjain - 09-04-2017

उत्तम तप धर्म

. *तप चाहै सुरराय,*
*
करम शिखर को वज्र है।*
*
द्वादश विधि सुखदाय,*
*
क्यों करै निजसकति सम।।*
*अर्थात -* देवता लोग भी संयम धारण कर तपश्चरण के लिए तरसते हैं क्योंकि तपश्चरण कर्म रूपी विशाल पर्वत को नष्ट करने हेतु वज्र के समान है। छह बाह्य और छह अभ्यंतर के भेद से यह बारह प्रकार का है यह ही मनुष्य को सुख देने वाला है।
. *उत्तम तप सबमाँहि बखाना,*
*
करम शैल को वज्र समाना।*
*
बस्यो अनादिनिगोद मंझारा,*
*
भूविकलत्रय पशु तन धारा।।*
*अर्थात -* यह जीव अनादि काल से तरह- की पर्यायों में भटकता रहा। कभी सूक्ष्म जीवों के शरीर को धारण किया, कभी पशुओं के शरीर को धारण किया।
. धारा मनुज तन महादुर्लभ,
*
सुकुल आयु निरोगता।*
*
श्री जैनवाणी तत्वज्ञानी,*
*
भई विषय पयोगत।।*
*अर्थात -* भिन्न भिन्न निकृष्ट पर्यायों को धारण करने के उपरांत यह दुर्लभ मनुष्य जीवन धारण किया। और उस में भी उत्तम कुल और निरोग शरीर प्राप्त किया। इंद्रियों को जीतने वाले तीनों लोकों के नाथ की वाणी का सानिध्य है।
. *अति महादुर्लभ त्याग विषय,*
*
कषाय जो तप आदरै।*
*
नर-भव अनूपम कनक घर पर,*
*
मणिमयी कलसा धरैं।।*
*अर्थात -*विषय कषायों को त्यागना दुर्लभ से दुर्लभ है, जो तपश्चरण करता है वह इनका त्याग रखता है तप सर्वोत्कृष्ट मनुष्य पर्याय रूपी स्वर्ण भवन पर मणियों के कलश रखने जैसा माना गया है तपस्या आत्मा से वधे कर्मो की निर्जरा करती है जैसे अग्नि स्वर्ण को शुध्द करती है वैसी ही तप आत्मा को शुध्द करता है
भारतीयसंस्कृति में तप का विशेष महत्व है इच्छाओं का निरोध करना ही तप है जीवन को पवित्र बनाने कर्मो की निर्जरा हेतु तप के मार्ग को अपनाना चाहिए।