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वास्तु पुरुष - Printable Version

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वास्तु पुरुष - scjain - 04-04-2018

वास्तु-पुरुष :-


राक्षस का वध करने के उपरांत भगवान शंकर के थकित शरीर के पसीने से उत्पन्न एक क्रूर भूखे सेवक की उत्पत्ति हुई जिसने अंधक
राक्षस के शरीर से बहते हुए खून को पिया फिरभी उसकी क्षुधा शांत नहीं हुई। तब उसने शिवजी की तपस्या की और भगवान से त्रिलोकों को खा जाने 
का वर प्राप्त कर लिया। जब वह तीनों लोकों को अपने अधीनकर भूलोक को चबा डालने के लिए झपटा तो देवतागण,
प्राणी सभी भयभीत हो गए। तब समस्त देवता ब्रह्मा जी के पास रक्षा सहायता हेतु पहुंचे। ब्रह्मा जी ने उन्हें अभयदान देते हुए उसे औंधे
मुंह गिरा देने की आज्ञा दी और इस तरह शिव जी के पसीने से उत्पन्न वह क्रूर सेवक देवताओं के द्वारा पेट के बल
गिरा दिया गया और उसे गिराने वाले ब्रह्मा, विष्णु, इंद्रआदि पैंतालीस देवता उसके विभिन्न अंगों पर बैठ गए। यही वास्तु-
पुरुष कहलाया। देवताओं ने वास्तु पुरुष से कहा तुम जैसे भूमि पर पड़े हुए हो वैसे ही सदा पड़े रहना और तीन माह में केवल एक बार
दिशा बदलना। भादों, क्वार और कार्तिक में पूरब दिशा में सिर वपश्चिम में पैर, अगहन, पूस और माघ के महीनों में पश्चिम की ओर
दृष्टि रखते हुए दक्षिण की ओर सिर और उत्तर की ओर पैर, फाल्गुन,चैत और बैसाख के महीनों में उत्तर की ओर दृष्टि रखते हुए पश्चिम में
सिर और पूरब में पैर तथा ज्येष्ठ, आषाढ़ और सावन मासों में पूर्वकी ओर दृष्टि और उत्तर दिशा में सिर व दक्षिण में पैर। वास्तु पुरुष
ने देवताओं के बंधन में पड़े हुए उनसे पूछा कि मैं अपनी भूख कैसेमिटाऊं। तब देवताओं ने उससे कहा कि जो लोग तुम्हारे प्रतिकूल
भूमि पर किसी भी प्रकार का निर्माण का कार्य करें उनलोगों का तुम भक्षण करना। तुम्हारी पूजन, शांति के हवनादि के
बगैर शिलान्यास, गृह-निर्माण, गृह-प्रवेश आदि करनेवालों को और तुम्हारे अनुकूल कुआं तालाब, बाबड़ी, घर, मंदिर
आदि का निर्माण न करने वालों को अपनी इच्छानुसार कष्ट देकर सदा पीड़ा पहुंचाते रहना। उपर्युक्त तथ्यों को देखते हुए
किसी भी प्रकार का निर्माण कार्य वास्तु के अनुरूपकरना चाहिए।
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