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श्री जिन सहस्त्रनाम मन्त्रावली प्रथम अध्याय भाग १ - Printable Version

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श्री जिन सहस्त्रनाम मन्त्रावली प्रथम अध्याय भाग १ - scjain - 06-03-2018

  श्री जिन सहस्त्रनाम  मन्त्रावली प्रथम अध्याय भाग १










- ॐ ह्रीं अर्हं   श्रीमते   नमः  -अनन्तचतुष्टाय रूप अंतरंग एवं अष्ट प्रातिहार्य रूप वहिर्ंग लक्ष्मी के स्वामी होने से ,


- ॐ ह्रीं अर्हं स्वयंभूवे   नमः  -किसी गुरु द्वारा उपदेशित नही बल्कि स्वयमेव ही सम्बुद्ध  होने से,


- ॐ ह्रीं अर्हं वृषभाय - नमः   -धर्म से सुशोभित होने से,


- ॐ ह्रीं अर्हं शम्भवाय   नमः   -अनंत सुख सम्पन्न अथवा संसार के अन्य अनेक प्राणियों को सुख देने  से,


- ॐ ह्रीं अर्हं शंभवे - नमः  - परमानन्द सुख देने से शंभु/योगीश्वर ',


- ॐ ह्रीं अर्हं आत्मभवे - नमः   -अपनी आत्मा में ही अपना साक्षात्कार स्वयं करने से,


- ॐ ह्रीं अर्हं स्वयंप्रभाय   नमः  - स्वयमेव ही प्रकाशमान होने से,


- ॐ ह्रीं अर्हं प्रभु-  नमः   -समर्थ अथवा सब के स्वामी होने से ',


- ॐ ह्रीं अर्हं भोक्त्रे  नमः   - अनंत आत्मोथ सुख का अनुभव करने,


१०- ॐ ह्रीं अर्हं विश्वभुवे  नमः   -केवलज्ञान की अपेक्षा सर्वत्र व्याप्त अरहवा ध्यानादि से सब जगह प्रत्यक्ष  प्रकट होने से,


११- ॐ ह्रीं अर्हं अपुनर्भवाय  नमः   -पुन:संसार में जन्म नही लेंने से,


१२- ॐ ह्रीं अर्हं विश्वात्मने  नमः   -की आत्मा में संसार के समस्त पदार्थ प्रतिबिंबित होने से,


१३- ॐ ह्रीं अर्हं विश्वलोकेशाय  नमः   -समस्त लोक के स्वामी होने से, ,


१४- ॐ ह्रीं अर्हं विश्वतश्चक्षुषे  नमः    -ज्ञानदर्शन रूपी नेत्र  द्वारा संसार में सभी ओर अग्रतिहत होने से ,


१५- ॐ ह्रीं अर्हं अक्षराय  नमः   -अविनाशी होने से ,


१६- ॐ ह्रीं अर्हं विश्वविदे  नमः   -लोक के समस्त पदार्थों के ज्ञाता होने से,


१७- ॐ ह्रीं अर्हं विश्वविध्येशाय  नमः   -समस्त विद्याओं के स्वामी होने से ,


१८- ॐ ह्रीं अर्हं विश्वयोनये  नमः   -समस्त पदार्थों की उत्पत्ति में कारण अथवा उन के उपदेशक होने से,


१९- ॐ ह्रीं अर्हं अनश्वराय   नमः   -का स्वरुपकभी अनश्वर  होने से  ,
  

२०- ॐ ह्रीं अर्हं विश्वदृश्वने  नमः   -लोक के समस्त पदार्थों को देखने    से


२१- ॐ ह्रीं अर्हं विभवे नमः    -केवलज्ञान की अपेक्षा सर्वत्र व्याप्त हैअथवा सब जीवों को संसार से पार लगाने में सामर्थ्यवान 


२३- ॐ ह्रीं अर्हं विश्वेशाय   नमः   -समस्त जगत के ईश्वर होने से,


२४- ॐ ह्रीं अर्हं विश्वलोचनाय   नमः   -संसार के समस्त पदार्थों के दृष्टा   होने से,


२५ - ॐ ह्रीं अर्हं विश्वव्यापिने  नमः   -संसार के समस्त पदार्थों के ज्ञाता और उनका ज्ञान सर्वत्र  व्याप्त होने से,


२६- ॐ ह्रीं अर्हं विधये  नमः   -भगवान समीचीन मोक्षमार्ग के  विधान के कर्त्ता होने से,


२७- ॐ ह्रीं अर्हं वेधसे  नमः   -धर्म रूप जगत की सृष्टि करने वाले होने से ,


२८- ॐ ह्रीं अर्हं शाश्वताय नमः   -सदैव विध्यमान रहने से शाश्वत,


२९- ॐ ह्रीं अर्हं विश्वोतमुखाय   नमः    -के समवशरण में चारों दिशाओं में मुख दिखने से /


३०- ॐ ह्रीं अर्हं विश्वकर्मणे  नमः    -कर्मभूमि की व्यवस्था करते समय लोगो की आजीविका हेतु;असी ,मसि आदि षट कार्यों के उपदेशक होने से, 


३१- ॐ ह्रीं अर्हं  जगज्ज्येष्ठाय   नमः   -जगत में सर्वश्रेष्ठ होने से,


३२- ॐ ह्रीं अर्हं विश्वमूर्तये  नमः   -अनन्तगुणमय अथवा  समस्त पदार्थों के आकार उनके  ज्ञान में प्रतिफलित होने से  ,


३३- ॐ ह्रीं अर्हं जिनेश्वराय  नमः   -कर्म शत्रुओं को जीतने वाले सम्यग्दृष्टि जीवों के ईश्वर होने से ,


३४- ॐ ह्रीं अर्हं विष्वदृशे  नमः   -का संसार के समस्त पदार्थों का सामान्यावलोकन करने से ,


३५- ॐ ह्रीं अर्हं विश्वभूतेशाय  नमः    -समस्त प्राणियों के ईश्वर होने से,


३६- ॐ ह्रीं अर्हं विश्वज्योतिषे   नमः   -की केवलज्ञान रुपी ज्योति अखिल संसार में व्याप्त होने से ,


३७- ॐ ह्रीं अर्हं अनीश्वराय   नमः   -सबके स्वामी होने से  किन्तु उनका कोई स्वामी नही होने से 


३८ ॐ ह्रीं अर्हं जिनाय  नमः  - के घातिया कर्मरूपी शत्रुओं पर विजयी  होने  से,


३९- ॐ ह्रीं अर्हं विष्णवे   नमः   -का कर्मरूपी शत्रुओं को जीतना ही शील से ,


४०- ॐ ह्रीं अर्हं अमेयात्मने   नमः   -की आत्मा अर्थात उनके अनंत गुणों को किसी के द्वारा भी नही जान सकने से ,


४१- ॐ ह्रीं अर्हं विश्वरीशाय  नमः   -पृथिवी के ईश्वर होने से,


४२- ॐ ह्रीं अर्हं जगतपतये  नमः   -तीनों लोको के स्वामी होने से ,


४३- ॐ ह्रीं अर्हं अनन्तजिते  नमः   -अनंत संसार/मिथ्या दर्शन पर  विजेता होने से,


४४- ॐ ह्रीं अर्हं अचिन्त्यात्मने  नमः   -की आत्मा का चिंतवन मन से भी नही किया जा सकने से ,


४५- ॐ ह्रीं अर्हं भव्यबन्धवे  नमः   -भव्य जीवों के हितैषी होने से ,


४६- ॐ ह्रीं अर्हं अबन्धनाय  नमः  -कर्म बंध से रहित होने से,


४७- ॐ ह्रीं अर्हं युगादिपुरुषाय  नमः   -कर्मभूमि रुपी युग में प्रारम्भ में उत्पन्न होने से,


४८- ॐ ह्रीं अर्हं ब्रह्मणे  नमः   -के केवलज्ञानादि गुण वृह्णं अर्थात वृद्धि को प्राप्तहोने से  ,


४९- ॐ ह्रीं अर्हं पंच ब्रह्मा  नमः   -पंचपरमेष्ठी स्वरुप होने से  ,


५०- ॐ ह्रीं अर्हं शिवाय   नमः   -आनंद स्वरुप होने से