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श्री जिन सहस्त्रनाम मन्त्रावली नवम अध्याय भाग २ - Printable Version

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श्री जिन सहस्त्रनाम मन्त्रावली नवम अध्याय भाग २ - scjain - 06-10-2018

श्री जिन सहस्त्रनाम मन्त्रावली नवम अध्याय भाग २



८५१-ॐ ह्रीं अर्हं सूर्यकोटिसमप्रभाय   नमः   -करोड़ो सूर्य के समान देदीप्यमान प्रभा केधारक होने से,

८५२-ॐ ह्रीं अर्हं तपनीयनिभाय  नमः  -सुवर्म समान भास्वर होने से,

८५३-ॐ ह्रीं अर्हं तुंगाय  नमः  -ऊँचा शरीर होने से,

८५४-ॐ ह्रीं अर्हं बालर्कारभाय नमः   -प्रात:कालीन सूर्य के समान बाल प्रभा के धारक होने से,

८५५-ॐ ह्रीं अर्हं अनलप्रभाय  नमः  -अग्नि के समान कान्तियुक्त होने से,

८५६-ॐ ह्रीं अर्हं संध्याभ्रवभ्रवे  नमः  -सांध्यकालीन मेघों के समान सुंदर लगने वाले,

८५७-ॐ ह्रीं अर्हं हेमाभाय  नमः   -स्वर्ण समान आभा से युक्त ,

८५८-ॐ ह्रीं अर्हं तप्तचामीकरप्रभाय  नमः  -तपाये स्वर्ण के समान प्रभा युक्त ,

८५९-ॐ ह्रीं अर्हं निष्टप्तकनकच्छायाय  नमः   -अत्यंत तपाये स्वर्ण के समान कांतिवान,

८६०-ॐ ह्रीं अर्हं कनत्कांचनसन्निभाय   नमः  -देदीप्यमान स्वर्ण के समान उज्ज्वल होने से ,

८६१-ॐ ह्रीं अर्हं हिरण्यवर्णाय  नमः   -स्वर्ण समान वर्ण होने से,

८६२-ॐ ह्रीं अर्हं स्वर्णाभाय  नमः  -स्वर्ण समान वर्ण होने से

८६३-ॐ ह्रीं अर्हं शातकुंभनिभप्रभाय   नमः  -स्वर्ण समान वर्ण होने से,

८६४-ॐ ह्रीं अर्हं द्योनाभाय  नमः  -स्वर्ण समान वर्ण होने से,

८६५-ॐ ह्रीं अर्हं जातरूपाभाय  नमः  - स्वर्ण समान वर्ण होने से,

८६६-ॐ ह्रीं अर्हं तप्तजाम्बूनदद्युतये  नमः  -स्वर्ण समान वर्ण होने से

८६७-ॐ ह्रीं अर्हं सुधौतकलधौतश्रीये  नमः  -स्वर्ण समान वर्ण होने से

८६८-ॐ ह्रीं अर्हं हाटकद्युतये  नमः  -स्वर्ण समान वर्ण होने से

८६९-ॐ ह्रीं अर्हं प्रदीप्ताय  नमः  -देदीप्यमान होने से ,

८७०-ॐ ह्रीं अर्हं शिष्टेष्टाय  नमः  -शिष्ट अर्थात उत्तम पुरुषों के इष्ट होने से,

८७१-ॐ ह्रीं अर्हं पुष्टिदाय  नमः -पुष्टि दाता होने से,

८७२-ॐ ह्रीं अर्हं पुष्टाय  नमः   -बलवान होने से अथवा लाभांतराय कर्म के क्षय होने से प्रत्येक समय प्राप्त होने वाली अनंत शुभ पुद्गल वर्गणाओं से परमौदारिक शरीर के पुष्ट होने से ,

८७३-ॐ ह्रीं अर्हं स्पष्टाय  नमः  -प्रकट दिखाई देने से,

८७४-ॐ ह्रीं अर्हं स्पष्टाक्षराय  नमः  -स्पष्ट अक्षर होने क्ससे,

८७५-ॐ ह्रीं अर्हं क्षमाय  नमः  -समर्थ होने से,

८७६-ॐ ह्रीं अर्हं शत्रुघ्नाय  नमः  -कर्म रूप शत्रुओं का क्षय करने से,

८७७-ॐ ह्रीं अर्हं अप्रतिघाय  नमः  -शत्रु रहित होने से,

८७८-ॐ ह्रीं अर्हं अमोघाय  नमः  -सफल होने से,

८७९-ॐ ह्रीं अर्हं प्रशास्नो  नमः   -उत्तम उपदेशक होने से,

८८०-ॐ ह्रीं अर्हं शासित्रे  नमः   -रक्षक होने से,

८८१-ॐ ह्रीं अर्हं स्वभूवे  नमः   -स्वयं उत्पन्न होने से,

८८२- ॐ ह्रीं अर्हं शांतिनिष्टाय  नमः  -शांत होने से,

८८३-ॐ ह्रीं अर्हं मुनिज्येष्ठाय  नमः   -मुनियो मे श्रेष्टम होने से ,

८८४-ॐ ह्रीं अर्हं शिवतातये  नमः   -कल्याण परम्परा के प्राप्त होने से,

८८५-ॐ ह्रीं अर्हं शिवप्रदाय  नमः   -कल्याण अथवा मोक्ष प्रदाता होने से

८८६-ॐ ह्रीं अर्हं शांतिदाय  नमः   -शांति प्रदाता होने से

८८७-ॐ ह्रीं अर्हं शांतिकृते  नमः   -शांति के कर्ता होने से,

८८८-ॐ ह्रीं अर्हं शांतये  नमः   -शांत स्वरुप होने से,

८८९-ॐ ह्रीं अर्हं कांतिमते नमः   -कांतियुक्त होने से,

८९०-ॐ ह्रीं अर्हं कामितप्रदाय  नमः  -इच्छित पदार्थों के प्रदाता होने से,

८९१-ॐ ह्रीं अर्हं श्रेयो निधये  नमः  - कल्याण के भंडार होने से,

८९२-ॐ ह्रीं अर्हं अधिष्ठानाय  नमः  -धर्म के आधार होने से,

८९३-ॐ ह्रीं अर्हं अप्रतिष्ठाताय  नमः   -अन्यकृत प्रतिष्ठा से रहित होने से ,

८९४-ॐ ह्रीं अर्हं प्रतिष्ठिताय  नमः  -प्रतिष्ठा अर्थात कीर्ति से युक्त होने से

८९५-ॐ ह्रीं अर्हं सुस्थिराय  नमः  -अतिशय स्थिर होने से ,

८९६-ॐ ह्रीं अर्हं स्थविराय  नमः   -समवशरण में गमन रहित होने से ,

८९७-ॐ ह्रीं अर्हं स्थाणवे  नमः   -अचल होने से,

८९८-ॐ ह्रीं अर्हं प्रथीयसे  नमः   -अत्यंत विस्तृत होने से,

८९९-ॐ ह्रीं अर्हं प्रथिताय  नमः   -प्रसिद्ध होने से ,

९००- ॐ ह्रीं अर्हं पृथवे  नमः   -ज्ञानादि गुणों की अपेक्षा महान होने से,