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64- ऋध्दियां (64 Ridhdiyan) - Printable Version

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64- ऋध्दियां (64 Ridhdiyan) - scjain - 07-23-2014

ऋध्दि :- ऋध्दि का अर्थ आत्मा कि वह शक्ति है, जो प्रगट हो जाये । ये शक्तियां हम सभी कि आत्माओं में अनन्त है।और तप के बल से कर्मों का क्षयोपशम होने के कारण मुनीश्वरों में ये ऋध्दियां प्रकट होती हैं।

64- ऋध्दियां
64-ऋध्दियाँ मुख्य रुप से आठ भागों में विभक्त हैं:-
(1) 18 बुध्दि ऋध्दियां
(2) 9 चारण ऋध्दियां
(3) 3 बल ऋध्दियां
(4) 11 विक्रिया ऋध्दियां
(5) 7 तप ऋध्दियां
(6) 8 ओषधि ऋध्दियां
(7) 6 रस ऋध्दियां
(8) 2 क्षेत्र ऋध्दियां

18 बुध्दि ऋध्दियां निम्न हैं:-

(1)केवल ज्ञान बुध्दि ऋध्दि :- सभी द्रव्यों के समस्त गुण एवं पर्यायें एक साथ देखने व जान सकने की शक्ति।

(2)मनःपर्ययज्ञान बुध्दि ऋध्दि :-अढाई द्वीपों के सब जीवों के मन की बात जान सकने की शक्ति।

(3) अवधिज्ञान बुध्दि ऋध्दि- द्रव्य,क्षेत्र,काल कि अवधि में विद्यमान पदर्थों को जान सकने कि शक्ति I

(4)कोष्ठ्बुध्दि ऋध्दि -जिस प्रकार भंडार में हीरा,पन्ना,पुख्रराज,सोना आदि पदार्थ जहाँ जैसे रख दिए जावें बहु्त समय बीत जाने पर भी वे जैसे के तैसे, न कम न अधिक, भिन्न-भिन्न उसी स्थान पर रखे मिलते हैं; उसी प्रकार सिध्दान्त,न्याय,व्याकरण आदिके सूत्र,गद्य,पद्य, ग्रन्थ जिस प्रकर पढ़े थे, सुने थे, बहुत समय बीत जाने पर भी यदि पूछा जाये, तो न एक भी अक्षर घट कर, न बढ कर ,न पलट कर,भिन्न भिन्न ग्रन्थों को उसी प्रकर सुना सके ऐसी शक्ति ।

(5) एक-बीज बुध्दि ऋध्दि- ग्रन्थो के एक बीज (अक्षर,शब्द,पद) को सुन कर पूरे ग्रन्थ के अनेक प्रकार के अर्थों को बता सकने कि शक्ति।

(6) संभिन्न संश्रोत्रत्व बुध्दि ऋध्दि- बारह योजन लम्बे नौ योजन चौड़े क्षेत्र में ठहरने वाली चक्रवर्ती की सेना के हाथी,घोड़े,ऊंट,बैल,पक्षी,मनुष्य आदि सभी की अक्षर-अनक्षर रूप नन प्रकर की ध्वनियों को एक साथ सुन कर अलग अलग सुन सकने की शक्ति l

(7) पदानुसारिणी बुध्दि ऋध्दि -ग्रन्थ के आदि के, मध्य के या अन्त के किसी एक पद को सुन कर सम्पूर्ण - ग्रन्थ को कह सकने की शक्ति ।

(8) दूरस्पर्शन बुध्दि ऋध्दि - fnव्य मतिज्ञान के बल से संख्यात योजन दूरवर्ती पदार्थों के स्पर्शन जान सकता है ;जबकि सामान्य मनुष्य अधिक से अधिक नौ योजन दूरी के पदार्थों का स्पर्शन जान सकता है ।

(9) दूर - श्रवण बुध्दि ऋध्दि - दिव्य मतिज्ञान के बल से संख्यात योजन दूरवर्ती शब्द सुनने कि शक्ति ; जबकि सामान्य मनुष्य अधिकतम बारह योजन तक के दूरवर्ती शब्द सुन सकता है l

(10) दूर-आस्वादन बुध्दि ऋध्दि -दिव्य मति ज्ञान के बल से संख्यात योजन दूर स्थित पदार्थों के स्वाद जान सकने की शक्ति ; जबकि मनुष्य अधिक से अधिक नौ योजन दूर स्थित पदार्थों के रस जान सकता है।

(11) दूर-घ्राण बुध्दि ऋध्दि- दिव्य मतिज्ञान के बल से संख्यात योजन दूर स्थित पदार्थों की गन्ध जान सकने कि शक्ति ; जब्कि मनुष्य अधिक से अधिक नौ योजन दूर स्थित पदार्थों की गन्ध ले सकता है ।

(12) दूर-अवलोकन बुध्दि ऋध्दि - दिव्य मतिज्ञान के बल से लाखों योजन दूर स्थित पदार्थों को देख सकने की शक्ति ; जबकि मनुष्य अधिकतम सैंतालीस हजार दो सौ त्रेसठ योजन दूर स्थित पदार्थों को देख सकता है ।

(13) प्रज्ञाश्रमणत्व बुध्दि ऋध्दि- पदार्थों के अत्यन्त सूक्ष्म तत्व जिनको केवली एवं श्रुतकेवली ही बता सकते हैं; द्वादशांग, चौदह पूर्व पढ़े बिना ही बतला सकने की शक्ति ।

(14) प्रत्येक-बुध्द बुध्दि ऋध्दि -अन्य किसी के उपदेश के बिना ही ज्ञान, संयम, व्रतादि का निरुपणकर सकने की शक्ति ।

(15) दशपूर्वित्व बुध्दि ऋध्दि - दस पूर्वों के ज्ञान के फल से अनेक महा विद्याओं के प्रगट होने पर भी चारित्र से चलायमान नहीं होने की शक्ति ।

(16) चतुर्दशपूर्वित्व बुध्दि ऋध्दि - चौदह पूर्वौं का सम्पूर्ण श्रुत ज्ञान धारण करने की शक्ति ।

(17) प्रवादित्व बुध्दि ऋध्दि- क्षुद्रवादी तो क्या, यदि इन्द्र भी शास्त्रार्थ करने आए,तो उसे भी निरुतर कर सकने की शक्ति।

(18) अष्टांग महानिमित -विज्ञ्त्व बुध्दि ऋध्दि- अन्तरिक्ष,भौम, अंग,स्वर, व्यंजन, लक्षण, छिन्न (तिल), स्वप्न- इन महा निमितों के अर्थ जान सकने की शक्ति।

नौ चारण ऋध्दियां निम्न हैं ः-

(1)जंघा चारण ऋध्दि - पृथ्वी से चार अंगुल ऊपर आकाश में,जंघा को बिना उठाये सैकड़ों योजन गमन कर सकने की शक्ति।

(2) वह्नि (अग्नि-शिखा) चारण ऋध्दि - अग्निकायिक जीवों की विराधना किये बिना अग्निशिखा पर गमन कर सकने की शक्ति l

(3) श्रेणी चारण ऋध्दि - सब जाति के जीवों की रक्षा करते हुए पर्वत श्रेणी पर गमन कर सकने की शक्ति ।

(4) फल चारण ऋध्दि - किसी भी प्रकर से जीवों की हानि नहीं हो, इस तरह से फलों पर चल सकने की शक्ति।

(5) अम्बुचारण ऋध्दि - जीव हिंसा किये बिना पानी पर चल सकने की शक्ति।

(6) तन्तुचारण ऋध्दि - मकड़ी के जाले के समान तन्तुओं पर भी उन्हें तोड़े बिना चल सकने कि शक्ति l

(7) पुष्पचारण ऋध्दि - फूलों में स्थित जीवों की विराधना किये बिना उन पर गमन कर सकने की शक्ति l

(8) बीजांकुर चारण ऋध्दि - बीजरूप पदार्थों एवं अंकुरों पर उन्हें किसी प्रकार हानि पहुंचाये किये बिना उन पर गमन कर सकने की शक्ति l

(9) नभचारण ऋध्दि - कायोत्सर्ग की मुद्रा में पद्मासन या खड़गासन में गमन कर सकने की शक्ति l

तीन बल ऋध्दियां निम्न हैं ः-

(1) मनबल ऋध्दि - अन्तर्मुहूर्त में ही समस्त द्वादशांग के पदार्थों को विचारने की शक्ति ।

(2) वचनबल ऋध्दि-जीभ,कंठ आदि में शुष्कता एवं थकावत हुए बिना सम्पूर्ण श्रुत का अंतर्मूहुर्त में ही पाठ कर सकने की शक्ति ।

(3) कायबल ऋध्दि - एक वर्ष, चातुर्मास आदि बहुत लम्बे समय तक कयोत्सर्ग करने पर भी शरीर का बल, कान्ति आदि थोड़ा भी कम न होने एवं तीनों लोकों को कनिष्ठ अंगुली परउठा सकने की शक्ति।

11 विक्रिया ऋध्दियां निम्न हैंः-

(1) अणिमा ऋध्दि - अणु के समान छो्टा शरीर कर सकने कि शक्ति ।

(2)महिमा ऋध्दि - सुमेरु पर्वत से भी बड़ा शरीर बना सकने कि शक्ति ।

(3) लघिमा ऋध्दि - वायु से भी हल्का शरीर बना सकने कि शक्ति ।

(4) गरिमा ऋध्दि - वज्र से भी कठोर शरीर बना सकने कि शक्ति ।

(5) कामरूपित्व ऋध्दि - एक साथ अनेक आकारोंवाले अनेक शरीरों को बन सकने की शक्ति l

(6) वशित्व ऋध्दि - तप के बल से सभी जीवों को अपने वश में कर सकने की शक्ति l

(7) ईशत्व ऋध्दि - तीनों लोकों पर प्रभुता प्रकट सकने की शक्ति l

(8) प्राकाम्य ऋध्दि - जल में पृथ्वी की तरह और पृथ्वी में जल की तरह चल सकने की शक्ति l

(9) अन्तर्धान ऋध्दि - तुरन्त अदृश्य हो सकने की शक्ति l

(10) आप्ति ऋध्दि - भूमि पर बैठे हुए ही अंगुली से सुमेरु पर्वत की चोटी,सुर्य, चन्द्रमा आदि को छू सकने की शक्ति l

(11) अप्रतिघात ऋध्दि - पर्वतों ,दीवारों के मध्य भी खुले मैदान के समान बिना रुकावत आवागमन की शक्ति l

7 तप ऋध्दियां निम्न हैं ः-

(1) दीप्त तप ऋध्दि - बड़े - बड़े उपवास करते हुए भी मनोबल, वचनबल, कायबल में वृध्दि, श्वास व शरीर में सुगन्धि, तथा महा कान्तिमान शरीर होने की शक्ति l

(2) तप्त तप ऋध्दि - भोजन से मल, मूत्र, रक्त, मांस आदि न बन कर गरम कड़ाई में से
पानी की तरह उड़ा देने की शक्ति l

(3) महा उग्र तप ऋध्दि - एक,दो, चार दिन के, पक्ष के, मास के आदि किसी उपवास को
धारण कर मरणपर्यन्त न छोड़ने की शक्ति

(4) घोर तप ऋध्दि -भयानक रोगों से पीड़ित होने पर भी उपवास व काय क्लेश आदि से नहीं
डिगने की शक्ति l

(5) घोर पराक्रमस्थ तप ऋध्दि - दुष्ट, राक्षस,पिशाच के निवास स्थान, भयानक जानवरों से व्याप्त पर्वत,गुफा,श्मशान,सूने गांव में तपस्या करने, समुद्र के जल को सुखा देने एवं तीनों लोकों को उठा कर फेंक सकने की शक्ति l

(6) परमघोर तप ऋध्दि - सिंह - निःक्रीडित आदि महा -उपवासों को करते रहने की शक्ति ।

(7) घोर ब्रह्मचर्य तप ऋध्दि - आजीवन तपश्चरण में विपरीत परिस्थिति मिलने पर भी स्वप्न में भी ब्रह्मचर्य से न डिगने की शक्ति ।
8 औषधि ऋध्दियां निम्न हैं ः-

(1) आमर्ष औषधि ऋध्दि - समीप जाकर जिनके बोलने या छूने से ही सब रोग दूर हो जाएं ऍसी शक्ति l

(2) सर्वौषधि ऋध्दि - जिनका शरीर स्पर्श करने वाली वायु ही समस्त रोगों को दूर कर दे ऍसी शक्ति l

(3) आशीर्विषा औषधि ऋध्दि - महाविष व्याप्त अथवा रोगी भी जिन्के आशीर्वचन सुनने से निरोग या निर्विष हो जाये ऍसी शक्ति ।

(4) दृष्टिअविषा ( दृष्टिनिर्विष ) ऋध्दि - महाविषव्याप्त जीव भी जिनकी दृष्टि से निर्विष हो जाए ऍसी शक्ति l

(5) क्ष्वेलौषधि ऋध्दि - जिनके थूक, कफ आदि से लगी हई हवा के स्पर्श की हुई वायु ही रोगनाशक हो ऍसी शक्ति ।

(6) विडौषधि ऋध्दि - जिनके मल(विष्ठा) से स्पर्श की हुई वायु ही रोगनाशक हो ऍसी शक्ति।

(7) जलौषधि ऋध्दि - जिनके शरीर के जल( पसीने ) में लगी हुई धूल ही महारोगहारी हो ऍसी शक्ति ।

(8) मलौषधि ऋध्दि - जिनके दांत ,कान, नाक, नेत्र आदि क मैल ही सर्व रोगनाशक होता है, उसे मलौषधि ऋध्दि कहते हैं ।

6 रस ऋध्दियां निम्न हैं :-

(1) आशीर्विष रस ऋध्दि - जिनके (कर्म उदय से क्रोधपूर्वक) वचन मात्र से ही शरीर में जहर फैल जाए ऍसी शक्ति ।

(2) दृष्टि वि्ष रस ऋध्दि - कर्म उदय से (क्रोध पूर्ण ) दृष्ति मात्र से ही मृत्युदायी जहर फैल जाए ऍसी शक्ति l

(3) क्षीरस्त्रावी ऋध्दि - जिससे नीरस भोजन भी हाथों में आते ही दूध के समान गुणकारी हो जाये अथवा जिनके वचन सुनने से क्षीण पुरुष भी दूध्पान के समान बल को प्राप्त करे ऐसी शक्ति।

(4) घृतस्त्रावी ऋध्दि- जिसके नीरस भोजन भी हाथों में आते ही घी के समान बलवर्धक हो जाए अथवा जिनके वचन घृत के समान तृप्ति करें ऐसी शक्ति।

(5) मधुस्त्रावी ऋध्दि- जिसके नीरस भोजन भी हाथों में आते ही मधुर हो जाए अथवा जिनके वचन सुन कर दुःखी प्राणी भी साता का अनुभव करे ऐसी शक्ति।

(6) अमृतस्त्रावी ऋध्दि- जिसके नीरस भोजन भी हाथों में आते ही अमृत के समान पुष्टि कारक हो जाए अथवा जिनके वचन अमृत के समान आरोग्यकारी हो ऐसी शक्ति।

2 क्षेत्र ऋध्दियां निम्न हैं :-

(1) अक्षीणसंवास ऋध्दि - ऐसी ऋध्दिधारी जहां ठहरे हों, वहां चक्रवर्ती की विशाल सेना भी बिना कठिनाई के ठहर सके ऐसी शक्ति।

(2) अक्षीणमहानस ऋध्दि - इस ऋध्दि के धारी जिस चौके में आहार करे,वहां चक्रवर्ती की सेना के लीये भी भोजन कम न पड़े ऐसी शक्ति।


RE: 64- ऋध्दियां (64 Ridhdiyan) - sumit patni - 08-22-2014

pooja mein konse part mein inka varnan hein