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Bhaktambar stotra 37 to 42 with meaning and riddhi mantra - Printable Version

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Bhaktambar stotra 37 to 42 with meaning and riddhi mantra - Nidhi Ajmera - 06-17-2021

इत्थं यथा तव विभूति- रभूज़ जिनेन्द्रर ! धर्मोपदेशन- विधी न तथा परस्य । 
यादृक्प्रभा- दिनकृतः प्रहतान्धकारा, तादृक्-कुतो ग्रहगणस्य विकासिनोऽपि ॥

प्रभुवर के धर्मोपदेश में जो वैभव होता। 
समवसरण सा विभव अन्य देवों में ना होता।। 
जैसी प्रखर प्रभा सूरज में तम को हरती है। 
झिलमिल करते अन्य ग्रहों में कभी न होती है ।। 
बाह्याभ्यंतर अनुपम वैभव प्रभु ने प्राप्त किया। 
भव भय हारक प्रभु चरणों में मैंने वास किया।। 
मानतुंग मुनिवर में प्रभु की भक्ति समाई है। 
भक्तामर में ऋषभदेव की महिमा गाई है।। (37)

ॐ ह्रीं अर्हम् मल्लौषधि ऋद्धये मल्लौषधि ऋद्धि प्राप्तेभ्यो नमो दीप प्रज्वलनम् करोमि । (37)


श्च्यो- तन्- मदाविल-विलोल-कपोल-मूल, मत्त- भ्रमद्- भ्रमर-नाद-विवृद्ध-कोपम् । 
ऐरावताभमिभ- मुद्धत दृष्ट्वा भयं भवति नो भवदाश्रितानाम् ॥

गज के गण्डस्थल से झरती अविरल मद जलधार। 
उस पर मत्त भँवर मँडराते करते हैं गुंजार ।। 
क्रोधित गज वह ऐरावत सा सम्मुख आ जाता।
 तव आश्रित वह भक्त कभी भयभीत नहीं होता।। 
मान रूप गज से निर्भय हो हनन किया मद का। 
आदिप्रभु ने पद पाया है शिवरमणी वर का।। 
मानतुंग मुनिवर में प्रभु की भक्ति समाई है। 
भक्तामर में ऋषभदेव की महिमा गाई है।। (38)

ॐ ह्रीं अर्हम् विप्रुषौषधि ऋद्धये विप्रुषौषधि ऋद्धि प्राप्तेभ्यो नमो दीप प्रज्वलनम् करोमि । (38)


भिन्नेभ-कुम्भ- गल-दुज्ज्वल-शोणिताक्त, मुक्ता-फल- प्रकरभूषित-भूमि-भागः । 
बद्ध-क्रमः क्रम-गतं हरिणाधिपोऽपि, नाक्रामति क्रम- युगाचल- संश्रितं ते ॥

जिसने गज के मस्तक फाड़े गजमुक्ता बिखरी । 
गिरी धरा पर धवल मोतियाँ लहु से भीग गयी।। 
ऐसा सिंह भयानक क्रोधी अति खूँखार रहा। 
दहाड़कर छल्लांग मारने को तैयार रहा ।। 
तव पद युगल गिरि आश्रित पर हमला ना करता। 
काल सिंह भी तब भक्तों का कुछ ना कर सकता ।।
 मानतुंग मुनिवर में प्रभु की भक्ति समाई है। 
भक्तामर में ऋषभदेव की महिमा गाई है।। (39)

ॐ ह्रीं अर्हम् सर्वौषधि ऋद्धये सर्वौषधि ऋद्धि प्राप्तेभ्यो नमो दीप प्रज्वलनम् करोमि । (39)


कल्पान्त-काल-पवनोद्धत-वह्नि -कल्पं, दावानलं ज्वलित-मुज्ज्वल-मुत्स्फुलिङ्गम् । 
विश्वं जिघत्सुमिव सम्मुख- मापतन्तं, त्वन्नाम- कीर्तन- जलं शमयत्यशेषम् ॥

प्रलयंकारी तेज पवन से अग्नि धधक रही। 
ऊपर उठती लपटें मानो जग को निगल रही ।। 
सम्मुख आती हुई वनाग्नि पल में बुझती है। 
जब भक्तों की जिह्वा प्रभु के नाम को रटती है ।। 
प्रभु का यशोगान जल ही भव अग्नि शान्त करें। 
अग्नि शामक नाम आपका मम मन वास करें ।। 
मानतुंग मुनिवर में प्रभु की भक्ति समाई है। 
भक्तामर में ऋषभदेव की महिमा गाई है।। (40)

ॐ ह्रीं अर्हम् मुख निर्विष ऋद्धये मुख निर्विष ऋद्धि प्राप्तेभ्यो नमो दीप प्रज्वलनम् करोमि । (40)


रक्तेक्षणं समद-कोकिल-कण्ठ-नीलम्, क्रोधोद्धतं फणिन-मुत्फण-मापतन्तम् । 
आक्रामति क्रम-युगेण निरस्त शङ्कस् त्वन्नाम- नागदमनी हृदि यस्य पुंसः ॥

मद युत कोयल कण्ठ सरीखा लाल नेत्र वाला। 
ऊपर फणा उठाकर क्रोधित कुटिल चाल वाला ।। 
डसने को तैयार भयंकर सर्प महा विकराल । 
आगे बढ़ते अहि को लांघे निर्भय वह तत्काल ।। 
जिसके मन में ऋषभ नाम की औषध रहती है। 
नाग दमन यह औषध विषयों का विष हरती है ।। 
मानतुंग मुनिवर में प्रभु की भक्ति समाई है। 
भक्तामर में ऋषभदेव की महिमा गाई है।(41)

ॐ ह्रीं अर्हम् दृष्टि निर्विष ऋद्धये दृष्टि निर्विष ऋद्धि प्राप्तेभ्यो नमो दीप प्रज्वलनम् करोमि । ( 41 )


वल्गत्- तुरङ्ग- गज-गर्जित- भीमनाद माजी बलं बलवता-मपि भूपतीनाम् । 
उद्यद्- दिवाकर- मयूख- शिखापविद्धं त्वत्कीर्तनात्तम इवाशु भिदामुपैति ॥

उछल रहे हैं घोड़े जिसमें गज गर्जन करते। 
शूरवीर नृप शत्रु भयंकर आवाजें करते ।। 
सर्व सैन्य को एक आपका भक्त भगा देता । 
ज्यों सूरज किरणों से तम को शीघ्र नशा देता ।। 
आदि प्रभु का अतिशयकारी नाम कहाता है। 
कर्म शत्रु सेना के भय से मुक्ति दिलाता है। 
मानतुंग मुनिवर में प्रभु की भक्ति समाई है। 
भक्तामर में ऋषभदेव की महिमा गाई है।। (42)

ॐ ह्रीं अर्हम् दृष्टि विष ऋद्धये दृष्टि विष ऋद्धि प्राप्तेभ्यो नमो दीप प्रज्वलनम् करोमि । (42)

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Bhaktambar stotra with meaning and riddhi mantra


RE: Bhaktambar stotra 37 to 42 with meaning and riddhi mantra - Nidhi Ajmera - 06-09-2023

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