Front Desk Architects and Planners Forum
Bhaktambar stotra 43 to 48 with meaning and riddhi mantra - Printable Version

+- Front Desk Architects and Planners Forum (https://frontdesk.co.in/forum)
+-- Forum: जैन धर्मं और दर्शन Jain Dharm Aur Darshan (https://frontdesk.co.in/forum/forumdisplay.php?fid=169)
+--- Forum: Jainism (https://frontdesk.co.in/forum/forumdisplay.php?fid=119)
+--- Thread: Bhaktambar stotra 43 to 48 with meaning and riddhi mantra (/showthread.php?tid=3132)



Bhaktambar stotra 43 to 48 with meaning and riddhi mantra - Nidhi Ajmera - 06-17-2021

कुन्ताग्र-भिन्न-गज-शोणित- वारिवाह, वेगावतार - तरणातुर - योध- भीमे । 
युद्धे जयं विजित-दुर्जय-जेय-पक्षास् त्वत्पाद-पङ्कज-वनाश्रयिणो लभन्ते ॥

तीखे भालों से भेदित गज लहु से सने हुए। 
रक्तधार में भी लड़ने योद्धा तैयार हुए। 
ऐसी सेना वाले रिपु को कौन जीत सकता। 
विजय पताका भक्त आपका ही फहरा सकता। 
प्रभु पद कमल रूप वन का जो आश्रय लेता है। 
कर्म शत्रु को जीत जगत में विजयी होता है ।।
 मानतुंग मुनिवर में प्रभु की भक्ति समाई है। 
भक्तामर में ऋषभदेव की महिमा गाई है।। ( 43 )

ॐ ह्रीं अर्हम् क्षीर स्त्रावी रस ऋद्धये क्षीर स्त्रावी रस ऋद्धि प्राप्तेभ्यो नमो दीप प्रज्वलनम् करोमि । ( 43 )


अम्भोनिधौ क्षुभित- भीषण- नक्र- चक्र पाठीन- पीठ- भय- दोल्वण- वाडवाग्नौ । 
रङ्गत्तरङ्गं -शिखर- स्थित- यान-पात्रा स्त्रासं विहाय भवतः स्मरणाद्-व्रजन्ति ॥ 
कुपित भयंकर मगर और घड़ियाल रहें जिसमें । 
मत्स्य पीठ की टककर से हो बड़वानल जिसमें । 
ऐसे तूफानी सागर में उठे भँवर उत्ताल । 
मानो अभी पलटने वाला हो ऐसा जलयान ।। 
मात्र आपके नाम स्मरण से सिन्धु पार करता। 
निडर भक्त भवदधि तिरकर अन्तर्यात्रा करता ।। 
मानतुंग मुनिवर में प्रभु की भक्ति समाई है। 
भक्तामर में ऋषभदेव की महिमा गाई है (44)

ॐ ह्रीं अर्हम् मधुर स्त्रावी रस ऋद्धये मधुर स्त्रावी | रस ऋद्धि प्राप्तेभ्यो नमो दीप प्रज्वलनम् करोमि । ( 44 )


उद्भूत- भीषण जलोदर भार-भुग्नाः,शोच्यां दशा-मुपगताश्-च्युत-जीविताशाः । 
त्वत्पाद- पंकज- रजो- मृत- दिग्ध- देहा: , मर्त्या भवन्ति मकर-ध्वज-तुल्यरूपाः ॥ 

महा जलोदर रोग भार से झुकी कमर जिनकी । 
शोचनीय है दशा छोड़ दी आशा जीने की। 
ऐसे नर तव चरण कमल की रज को छू लेते ।। 
निरोग हो वे कामदेव से सुन्दर हो जाते । 
श्रद्धा से मैं नाथ चरण रज शीश चढ़ाऊँगा ।। 
देह मुक्त होकर विदेह पद को पा जाऊँगा ।। 
मानतुंग मुनिवर में प्रभु की भक्ति समाई है। 
भक्तामर में ऋषभदेव की महिमा गाई है।। (45)

ॐ ह्रीं अर्हम् अमृत स्त्रावी रस ऋद्धये अमृत स्त्रावी रस ऋद्धि प्राप्तेभ्यो नमो दीप प्रज्वलनम् करोमि । ( 45 )


आपाद - कण्ठमुरु- शृङ्खल- वेष्टिताङ्गा, गाढं-बृहन्-निगड-कोटि निघृष्ट जङ्घाः । 
त्वन्-नाम-मन्त्र- मनिशं मनुजा: स्मरन्त:, सद्य: स्वयं विगत-बन्ध-भया भवन्ति ॥

बड़ी-बड़ी बेड़ी से जिनका तन है कसा बँधा। 
दृढ साँकल की नोक से जिनकी छिल गयी जंघा ।। 
ऐसे बन्दीजन अविरल तव नाम मंत्र जपते । 
उनके बंधन स्वयं तड़ातड़ पलभर में नशते ।।
 आदि प्रभु के नाम मंत्र में है ऐसी शक्ति । 
कर्म बंध से विमुक्त हो भविजन पाते मुक्ति ।। 
मानतुंग मुनिवर में प्रभु की भक्ति समाई है। 
भक्तामर में ऋषभदेव की महिमा गाई है।। (46)

ॐ ह्रीं अर्हम् सर्पि स्त्रावी रस ऋद्धये सर्पि स्त्रावी रस ऋद्धि प्राप्तेभ्यो नमो दीप प्रज्वलनम् करोमि । (46)


मत्त-द्विपेन्द्र- मृग- राज-दवानलाहि संग्राम-वारिधि-महोदर बन्ध -नोत्थम् । 
तस्याशु नाश-मुपयाति भयं भियेव, यस्तावकं स्तव-मिमं मतिमानधीते ॥

बुद्धिमान जो प्रभु स्तोत्र को भावों से पढ़ता । 
उसका भय तत्काल स्वयं ही डरकर भग जाता।। 
चाहे वह भय मत्त हाथी या सिंह अग्नि का हो । 
सर्प युद्ध सागर या भारी रोग जलोदर हो । 
बंधन से भी प्रकट हुआ भय शीघ्र विनशता है। 
निर्भय होकर भक्त शीघ्र शिवधाम पहुँचाता है ।। 
मानतुंग मुनिवर में प्रभु की भक्ति समाई है। 
भक्तामर में ऋषभदेव की महिमा गाई है। (47)

ॐ ह्रीं अर्हम् अक्षीण महानस रस ऋद्धये अक्षीण महानस रस ऋद्धि प्राप्तेभ्यो नमो दीप प्रज्वलनम् करोमि। (47)


स्तोत्र-स्रजं तव जिनेन्द्र गुणैर्निबद्धाम, भक्त्या मया रुचिर-वर्ण-विचित्र पुष्पाम् । 
धत्ते जनो य इह कण्ठ-गता-मजस्रं, तं मानतुङ्ग मवशा समुपैति लक्ष्मीः ॥

प्रभु गुण की डोरी में अक्षर पुष्प पिरोये हैं। 
भक्तिमाल में आदि प्रभु के गुण ही गाये हैं ।। 
जो श्रद्धालु स्वयं कण्ठ में स्तुति माला धारें। 
मानतुंग सम उन्नत हो वह मुक्ति रमा पावें। 
नाथ आपके ज्ञान बाग की सुरभि मैं पाऊँ । 
बंध रहित निर्भय होकर मैं शिव रणमी पाऊँ ।। 
मानतुंग मुनिवर में प्रभु की भक्ति समाई है। 
भक्तामर में ऋषभदेव की महिमा गाई है।। (48)

ॐ ह्रीं अर्हम् अक्षीण महालय ऋद्धये अक्षीण महालय ऋद्धि प्राप्तेभ्यो नमो दीप प्रज्वलनम् करोमि। (48)

Download full pdf 
Bhaktambar stotra with meaning and riddhi mantra


RE: Bhaktambar stotra 43 to 48 with meaning and riddhi mantra - Nidhi Ajmera - 06-09-2023

Bhaktambar stotra with meaning and riddhi mantra PDF

for more detail  
भक्तामर स्त्रोत 48 दीपकों के साथ रिद्धि-सिद्धि मंत्रों से