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मुख्य द्वार का वास्तु ः-(Vastu Tips for Main Gate) - Printable Version

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मुख्य द्वार का वास्तु ः-(Vastu Tips for Main Gate) - scjain - 08-01-2014

Vastu Tips for Main Gate:-
मुख्य द्वार का वास्तु:-
1. घर का मेन गेट और किचन आमने-सामने न बनाएं क्योंकि ये पाचन सम्बन्धी बीमारियों को जन्म देने के साथ-साथ रोग प्रतिरोधक क्षमता को कम करता है। यदि किचन का स्थान परिवर्तन करना सम्भव ना हो तो दरवाजे पर चिक या परदा लगा दें।

2.घर का द्वार धरातल से नीचा ना हो।

3.मान-सम्मान चाहते हैं तो प्रवेश द्वार को साफ-सुथरा व सजा कर रखें।

4. यदि भवन का मुख्य द्वार पूर्वमुखी हो तो भवन के पूर्व-उत्तर में खाली स्थान अवश्य छोड़े, जिससे धन, वंश और पुत्र लाभ के साथ-साथ स्वास्थ्य भी बेहतर रहेगा।

5. जहां तक हो सके भवन का पूर्व भाग नीचा रखें, जिससे भवन स्वामी स्वस्थ व साधन संपन्न होगा।

6. यदि भवन में किराएदार रखना हो तो स्वयं ऊपरी मंजिल में रहें और किराएदार को ग्राउंड फ्लोर में रखें।

7. भवन में आग्नेय (पूर्व-दक्षिण) कोण में कोई अन्य द्वार न रखें। यदि ऐसा करेंगे तो मुकद्में, आर्थिक तंगी, चोरी व अग्नि का भय बना रहेगा।

8. भवन में पूर्व दिशा या पूर्व उत्तर (ईशान) कोण में कुआं या हैंडपंप या ट्यूबवैल अथवा जलस्त्रोत का स्थान अवश्य बनाएं।

9. पूर्व दिशा में बरामदा नीचा रखने पर घर में स्वास्थ्य और यश की वृद्धि होती है।

10. पूर्व दिशा की चार दीवारी, पश्चिम दिशा की चार दीवारी से कम ऊंची होनी चाहिए।

11. मकान के पूर्व भाग या ईशान कोण को अपवित्र न रखें, ऐसा करने से धन और संतान की हानि हो सकती है।

12. उत्तर दिशा में मुख्य द्वार वाले भवन में उत्तरी दिशा की चारदीवारी घर बनवाने के बाद बनवानी चाहिए। यदि ऐसा नहीं करेंगे तो धन हानि व बाधाओं का सामना करना पड़ेगा।

13. यदि उत्तरमुखी भवन में किराएदार हो तो मकान मालिक को उच्च भाग यानी पहली मंजिल में निवास करना चाहिए।

14. भवन के दक्षिण-पश्चिम में रिक्त स्थान अधिक छोडऩा हानिकारक है।

15. उत्तर-पूर्व या ईशान कोण में टीले, कूड़ा, गोबर य बेकार सामान न रखें, यदि रखेंगे तो आर्थिक तंगी व धन हानि से परेशान रहेंगे।

16. समस्त प्रकार के जल का प्रवाह या बहाव उत्तर से भी ईशान की ओर रखना शुभफलदायी है।

17. भवन में रसोई आग्नेय कोण में व पूजा स्थल ईशान कोण में अवश्य बनाएं। ऐसा करना गृह की सुख-शांति के लिए उत्तम है।

18. उत्तरी क्षेत्र में दक्षिण क्षेत्र की अपेक्षा खाली स्थान अधिक रखें।

19. बरामदा और भवन का खाली भाग नीचा रखने पर पारिवारिक सुख व धन लाभ होता है।

20. यदि मुख्य द्वार पश्चिम में हो और अन्य द्वार भी पश्चिम में हों तो और भी विशेष शुभ फल प्राप्त होते हैं।

21. भवन के पश्चिममुखी भाग में ऊंचा चबूतरा एवं ऊंची दीवार का होना सुख-समृद्धि और यश प्राप्ति के लिए शुभ है।

22. जिस पश्चिम मुखी भूखंड में गहरे गड्ढे हो जिन्हें भर पाना कठिन हो। उसे न खरीदें।

23. पश्चिम दिशा में चारदीवारी ऊंची होना धनकारक है।

24. पश्चिम दिशा में घने वृक्ष लगाना शुभ है।

25. पश्चिम दिशा में कूड़ा, पत्थर व टीला आदि होने का भी शुभ फल मिलता है।

26. पश्चिम दिशा में गड्ढा या भूमिगत पानी का टैंक या सेप्टिक टैंक न बनवाएं।

27. दक्षिणमुखी भवन का जल उत्तर दिशा से निकास हो तो स्त्रियों को स्वास्थ्य लाभ के साथ धन लाभ भी होता है। यदि उत्तर दिशा से जल का निकास न हो सके तो पूर्व दिशा से जल का निकास होना चाहिए। ऐसा करने पर पुरुष यशस्वी व स्वस्थ होंगे।

28. दक्षिण दिशा में मकान के सामने टीले, पहाड़ी और कोई ऊंचा भवन हो तो शुभ फलदायी होता है।

29. दक्षिणमुखी भवन का दक्षिण भाग कभी भी नीचे न रखें, यदि रखेंगे तो घर की स्त्रियां अस्वस्थ, धन हानि और आकस्मिक मृत्यु का सामना करना पड़ेगा।

30. दक्षिण भाग में कभी भी कुआं या बोरिंग न करवाएं। ऐसा करने से धनहानि, दुर्घटना व आकस्मिक मृत्यु का सामना करना पड़ सकता है।

31. दक्षिण भाग में बनने वाले कक्षों के बरामदे या फर्श नीच न बनाएं। कोशिश यही करें कि इस भाग में जो भी निर्माण करें वह पूर्व, उत्तर व ईशान दिशा की अपेक्षा ऊंचा हो।