तत्वार्थसूत्रजी (अध्याय ८) भाग १
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उमास्वामी आचार्यश्री, इस अध्याय में २६ सूत्रों के माध्यम से चौथे 'बंध' तत्व के कारण सूत्र ,लक्षण सूत्र , और भेद सूत्र -,प्रकृतिबंध सूत्र -१३,स्थितिबंध सूत्र १४-२०,अनुभागबंध सूत्र २१-२३,प्रदेश बंध सूत्र २४ ,पूण्य प्रकृतियों सूत्र २५ और पाप प्रकृतियों का सूत्र २६ में उपदेश दे रहे है!अपने कर्मों का भार कम करने के लिए बंध के कारणों और लक्षणों को जानकार इनसे सावधान रहना उपदेशित है !
कर्मों के बंध का कारण
मिथ्यादर्शनाविरतिप्रमादकषाययोगाबंधहेतव:! !
संधिविच्छेद-मिथ्यादर्शन+अविरति+प्रमाद+कषाय+योगा+बंध+हेतव:
शब्दार्थ-मिथ्यादर्शन-मिथ्यादर्शन,अविरति १२ प्रकार की अविरती,प्रमाद-धार्मिक क्रियाओं अरुचि होना, कषाय-आत्मा को कषने वाला,और योगा -योग;मन वचन काय ,बंध कर्मबंध,हेतव:- के कारण है 


अर्थ-मिथ्यादर्शन,अविरति,प्रमाद,कषाय,और योग (मन वचन काय ) कर्म बंध के कारण है !
भावार्थ-मिथ्यादर्शन:मिथ्यात्व कर्मोदय से सात तत्वों, नौ पदार्थों में अश्रद्धान होना अथवा अतत्वों में श्रद्धान होना मिथ्यादर्शन है! मिथ्यादर्शन के दो भेद:--गृहित और - अगृहित है!
-गृहित मिथ्यादर्शन-परोपपदेश द्वारा अतत्वों में श्रद्धान होना गृहितमिथ्यादर्शन है -
अगृहित मिथ्यादर्शन- परोपपदेश के अभाव में मिथ्यात्व कर्मोदय से,अगृहित मिथ्यादर्शन होता है!
मिथ्यदर्शन के पांच भेद है--एकांतमिथ्यादर्शन-वस्तु का स्वरुप अनेकांतमय है-किसी एक अपेक्षा से वस्तु नित्य है और दूसरी अपेक्षा से अनित्य है,किसी अपेक्षा से हेय है तथा किसी अन्य अपेक्षा से उपादेय है,किसी अपेक्षा से भिन्न है और किसी अन्य अपेक्षा से अभिन्न है! उसका स्वरुप अनेकांतमय नहीं मानकर,एकांतमय ही मानना जैसे,वस्तु नित्य ही है अथवा अनित्य ही है अथवा उपादेय ही है हेय नहीं है,वह भिन्न ही है अथवा अभिन्न ही है, इस प्रकार दोनों विपरीत गुणों में से एक ही मानना,एकांत मिथ्यादर्शन है
-विपरीत मिथ्यादर्शन-वस्तु के स्वरुप को आगम के विरुद्ध मानना जैसे केवली कवालाहार करते है,परिगृह सहित भी गुरु होते है ,स्त्री को भी मोक्ष प्राप्त हो सकता है,मात्र सम्यक् चारित्र से मोक्ष हो सकता है, सम्यग्दर्शन सम्यगज्ञान की मोक्ष प्राप्ति के लिए आवश्यकता नहीं है, इत्यादि मान्यताएं विपरीत मिथ्यादर्शन है!
-संशय मिथ्यादर्शन-भगवान् के उपदेशित वचनों में संशय करना, जैसे भगवान् ने लोक में नरक और १६ स्वर्गों का उपदेश दिया ,अथवा रत्नत्रय मोक्षमार्ग है;मध्यलोक में असंख्यात द्वीप समूह है,जिनेन्द्र देव के वचनों मे संशय करना कि, ऐसा है भी या नहीं है,संशय मिथ्यादर्शन है !
-विनय मिथ्यादर्शन- अन्य मतियों के सभी देवी-देवताओं को जैनागम में प्रणीत देवों के सामान मानकर , सच्चे -झूठे का भेद जाने बिना,विनय,आदर श्रद्धान करना,विनय मिथ्यात्व है !
-अज्ञान मिथ्यादर्शन-अपने हेतु कल्याणकारी अथवा अकल्याणकारी ज्ञान को प्राप्त करने में उदासीन रहना !जैसे कही सच्चे धर्म पर प्रवचन चलरहा हो वहाँ कहना कि धर्म में क्या रखा है,धर्म कुछ नहीं होता ,बस परोपकार रूप कार्य करना ही धर्म है!यह अज्ञान मिथ्यादर्शन है!
अविरति- संयम का अभाव अविरति है इसके १२ भेद है !
संयम-- प्राणी संयम- षटकाय जीवों की रक्षा करना प्राणी संयम, है इन की रक्षा नहीं करना प्राणी अविरति है और -इन्द्रिय संयम-पञ्च इन्द्रियों और एक मन को संयमित करना इन्द्रिय संयम है!इनको संयमित नहीं करना इन्द्रिय अविरति है!अर्थ पंच इन्द्रिय और मन के विषयों में रोकना !

प्रमाद -मोक्षमार्ग के कार्यों में /आत्मकल्याण कार्यों में अनादर होना,रूचि/उत्साह नहीं होना प्रमाद है!प्रमाद के १५ भेद है!
विकाथाओं-स्त्री कथा,राजकथा ,भोगकथा और,चोरकथ

कषायों-सामान्य से कषाय क्रोध मान,माया ,लोभ ,
इन्द्रियां-स्पर्शन,रसना,घ्राण,चक्षु और कर्ण तथा ,स्नेह और निंद्रा १५ भेद प्रमाद के है
!
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तत्वार्थसूत्रजी (अध्याय ८) भाग १ - by scjain - 04-17-2016, 09:28 AM
RE: तत्वार्थसूत्रजी (अध्याय ८) भाग १ - by Manish Jain - 05-11-2023, 09:17 AM

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