प्रवचनसारः गाथा -79 शुद्ध आत्मा के शत्रु, मोह का स्वाभाव व प्रकार
#1

श्रीमत्कुन्दकुन्दाचार्यविरचितः प्रवचनसारः
आचार्य कुन्दकुन्द विरचित
प्रवचनसार

गाथा -79 (आचार्य अमृतचंद की टीका अनुसार)
गाथा -83 (आचार्य जयसेन की टीका अनुसार )


चत्ता पावारंभं समुट्ठिदो वा सुहम्मि चरियम्हि /
ण जहदि जदि मोहादी ण लहदि सो अप्पगं सुद्धं // 79 //

आगे कहते हैं, कि मैं समस्त पापयोगोंको छोड़कर चारित्रको प्राप्त हुआ हूँ, यदि मैं शुभोपयोगके वश होकर मोहको दूर न करूँगा, तो मेरे शुद्धात्मका लाभ कहाँसे होगा ? इसलिये मोहके नाश करनेको उद्यमी हूँ।--[पापारम्भं] पापका कारण आरंभको [त्यक्त्वा ] छोड़कर [वा] अथवा [शुभे चरिते ] शुभ आचरणमें [समुत्थितः] प्रवर्तता हुआ ['य'] जो पुरुष [यदि ] यदि [ मोहादीन् ] मोह, राग, द्वेषादिकोंको [न जहाति ] नहीं छोड़ता है, ['तदा'] तो [सः] वह पुरुष [शुद्धं आत्मकं] शुद्ध अर्थात् कर्म-कलंक रहित शुद्ध जीवद्रव्यको [न लभते] नहीं पाता / 

भावार्थ-जो पुरुष सब पाप क्रियाओंको छोड़कर परम सामायिक नाम चारित्रकी प्रतिज्ञा करके शुभोपयोग क्रियारूप मोह-ठगकी खोटी स्त्रीके वशमें होजाता है, वह मोहकी सेनाको नहीं जीत सकता, और उसके समीप अनेक दुःख संकट हैं, इसलिये निर्मल आत्माको नहीं पाता / इसी कारण मैंने मोहसेनाके जीतनेको कमर बाँधी है

मुनि श्री प्रणम्य सागर जी  प्रवचनसार गाथा - 79

अन्वयार्थ - (पावारंभ) पापा को (चत्ता) छोड़कर (सुहम्मि चरियम्मि) शुभ चरित्र (समुट्ठिदो वा) उद्यत होने पर भी (जदि) यदि जीव (मोहादी) मोहादि को (ण जहदि) नहीं छोड़ता तो (सो) वह (सुद्धं अप्पगं) शुद्ध आत्मा को (ण लहदि) प्राप्त नहीं होता।


Manish Jain Luhadia 
B.Arch (hons.), M.Plan
Email: manish@frontdesk.co.in
Tel: +91 141 6693948
Reply


Messages In This Thread
प्रवचनसारः गाथा -79 शुद्ध आत्मा के शत्रु, मोह का स्वाभाव व प्रकार - by Manish Jain - 09-22-2022, 03:27 PM
RE: प्रवचनसारः गाथा -79 शुद्ध आत्मा के शत्रु, मोह का स्वाभाव व प्रकार - by sumit patni - 09-22-2022, 03:29 PM
RE: प्रवचनसारः गाथा -79 शुद्ध आत्मा के शत्रु, मोह का स्वाभाव व प्रकार - by sandeep jain - 09-22-2022, 03:42 PM

Forum Jump:


Users browsing this thread: 1 Guest(s)