प्रवचनसारः गाथा -89 स्वरुप अस्तित्व का वर्णन
#3

आचार्य ज्ञानसागरजी महाराज कृत हिन्दी पद्यानुवाद एवं सारांश

गाथा -89,90

है निजदेह प्रमाण आत्मद्रव्य  चेतनायुक्त अहा ।
इतर द्रव्य अचेतन ऐसे समझे मोहाभाव कहा ॥

जो निर्मोही होना चाहे जैनागमसे ठीक करे

अतः ज्ञानयुत जीव और वह देहादिक जगके सगरे॥ 45



सारांश:- जैनागममें बताया है कि द्रव्य, गुण और पर्याय ये तीनों ही जानने योग्य हैं। इनमें परस्पर दात्म्य नामक अभिभाव सम्बन्ध बना हुआ है। गुणको कभी भी नहीं छोड़नेवाला द्रव्य होता है गुणोंमें विकार (परिणमन) होते रहनेका नाम पर्याय है। हर एक द्रव्य अपने अपने गुणोंको सदा अपने साथमें रखते हुए परस्पर एक द्रव्य दूसरे द्रव्यसेन होता है। आत्मद्रव्य अपने अन्य गुणोंके साथ साथ चेतना गुणवाला है। शेष सब द्रव्य चेतना रहित (जड़) होते हैं। आत्मा समुद्घात के सिवाय इतर समय में अपने प्राप्त हुए शरीरप्रमाण रहनेवाला है।


इस प्रकार का जैनागम विहित पदार्थोंका स्वरूप युक्ति और अनुभव के द्वारा भी विचार करने पर सही सिद्ध होता है। अतः जो मनुष्य अपने विश्वास को जैनागमके अनुकूल बना लेता है, वह भूलरहित हो जाता है। जो सुमार्ग में लगना चाहता हो उसे चाहिए कि वह जैनागम का अभ्यास करे। अन्यथा वह गृहस्थ ही क्या किन्तु साधु सन्यासी बन करके भी धर्मात्मा नहीं हो सकता है।
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प्रवचनसारः गाथा -89 स्वरुप अस्तित्व का वर्णन - by Manish Jain - 09-29-2022, 03:26 PM
RE: प्रवचनसारः गाथा -89 स्वरुप अस्तित्व का वर्णन - by sumit patni - 09-29-2022, 03:28 PM
RE: प्रवचनसारः गाथा -89 स्वरुप अस्तित्व का वर्णन - by sandeep jain - 09-29-2022, 03:38 PM

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