प्रवचनसारः ज्ञेयतत्त्वाधिकार-गाथा -7 , स्वभाव में अवस्थित द्रव्य का सद्भाव
#1

श्रीमत्कुन्दकुन्दाचार्यविरचितः प्रवचनसारः
आचार्य कुन्दकुन्द विरचित
प्रवचनसार : ज्ञेयतत्त्वाधिकार

गाथा -7 (आचार्य अमृतचंद की टीका अनुसार)
गाथा -109 (आचार्य प्रभाचंद्र  की टीका अनुसार )


सदवट्ठिदं सहावे दव्वं दव्वस्स जो हि परिणामो।
अत्थेसु सो सहावो ठिदिसंभवणाससंबद्धो // 7 //


आगे कहते हैं कि उत्पाद, व्यय, ध्रौव्यके होनेपर ही सत् द्रव्य होता है-[स्वभावे] अपनी परिणतिमें [अवस्थितं] ठहरा हुआ जो [सत् ] सत्तारूप वस्तु सो [द्रव्यं] द्रव्य है / और [द्रव्यस्य ] द्रव्यका [अर्थेषु ] गुणपर्यायोंमें [यः] जो [स्थितिसंभवनाशसंबद्धः] ध्रौव्य, उत्पाद, और व्यय सहित [परिणामः] परिणाम है, [सः] वह [हि] [स्वभावः] स्वभाव है / 

भावार्थ-द्रव्यके गुणपर्यायरूप परिणमनेको स्वभाव कहते हैं, और वह स्वभाव उत्पाद, व्यय, ध्रौव्य सहित है। जैसे एक द्रव्यके चौड़ाईरूप सूक्ष्मप्रदेश अनेक हैं, उसी प्रकार समस्त द्रव्योंकी परिणतिके प्रवाहक्रमसे लम्बाईरूप सूक्ष्मपरिणाम भी अनेक हैं। द्रव्योंकी चौड़ाई प्रदेश हैं / और लम्बाई परिणति हैं / प्रदेश सदाकाल स्थायी हैं, इसी कारण चौड़ाई है, और परिणति प्रवाहरूप क्रमसे है, इसी लिये लम्बाई है / जैसे द्रव्यके प्रदेश पृथक् पृथक् हैं, उसी प्रकार तीन कालसंबंधी परिणाम भी जुदे जुदे हैं / और जैसे वे प्रदेश अपने अपने स्थानोंमें अपने पूर्व पूर्व प्रदेशोंकी अपेक्षा उत्पन्न हैं, उत्तर उत्तर (आगे आगेके) प्रदेशों की अपेक्षा व्यय हैं। एक द्रव्य संपूर्ण प्रदेशों में है, इस अपेक्षासे न उत्पन्न होते हैं, न नाश होते हैं, ध्रुव हैं / इसी कारण प्रदेश उत्पाद, व्यय और ध्रुवताको धारण किये हुए हैं। इसी प्रकार परिणाम अपने कालमें पूर्व उत्तर परिणामोंकी अपेक्षा उत्पाद व्ययरूप है, सदा एक परिणतिप्रवाहकी अपेक्षा ध्रुव है, इस कारण परिणाम भी उत्पाद-व्यय-ध्रुवता संयुक्त है / जो परिणाम है, वही स्वभाव है, और द्रव्य स्वभावके साथ है, इसी कारण द्रव्य भी पूर्वोक्त तीन लक्षण-युक्त है। जैसे मोतियों की मालामें अपनी प्रभासे शोभायमान जो मोती हैं, वे पहले पहले मोतियोंकी अपेक्षा आगे आगेके मोती उत्पादरूप है, पिछले पिछले व्ययरूप हैं, और सबमें सूत एक है, इस अपेक्षासे ध्रुव हैं / इसी प्रकार द्रव्यमें उत्तर परिणामोंकी अपेक्षा उत्पाद, पूर्वपरिणामोंकी अपेक्षा व्यय, और द्रव्य प्रवाहकी अपेक्षा ध्रौव्य है / इस तरह द्रव्य तीन लक्षण सहित है

मुनि श्री प्रणम्य सागर जी  प्रवचनसार

◼ इस वीडियो के माध्यम से प्रत्येक द्रव्य में सत् रूप, उसमें प्रति समय होने वाला उत्पाद और व्यय बताया गया है।
◼ प्रत्येक द्रव्य में एक पर्याय का नाश हुआ दूसरी पर्याय की उत्तपत्ति हुई और द्रव्य का द्रव्यपना(अस्तित्व) ज्यों का त्यों बना रहा। यह स्थूल रूप से तो हम भी समझ लेते हैं लेकिन सूक्ष्म रूप से जो प्रत्येक द्रव्य में प्रति क्षण यह उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य हो रहा है इसी को इस गाथा में समझाया गया है।

◼ कुछ लोगों की मान्यता बन जाती है कि पर्यायों का बदलना क्रमबद्ध है अर्थात यह पहले ही निश्चित है कि आगे क्या होना है?  यदि ऐसा है तो फिर पुरुषार्थ और निमित्त का कोई महत्व ही नहि रहेगा।

Manish Jain Luhadia 
B.Arch (hons.), M.Plan
Email: manish@frontdesk.co.in
Tel: +91 141 6693948
Reply


Messages In This Thread

Forum Jump:


Users browsing this thread: 1 Guest(s)