प्रवचनसारः ज्ञेयतत्त्वाधिकार-गाथा - 9, 10 उत्पाद, व्यय व ध्रौव्य
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आचार्य ज्ञानसागरजी महाराज कृत हिन्दी पद्यानुवाद एवं सारांश

गाथा -9,10


उत्पाद स्थिति और नाश भी पर्ययसे ही होता है।
तीनोंका तादात्म्य जहाँ वह वस्तु यही समझौता है ॥
प्राक्पर्यायका नाश औरका जन्म तथा स्थिति तत्पनसे ।
एकसाथ तीनों जहाँ वहाँ उन तीनोंमय वस्तु लसे ॥


शङ्काः – यहाँ ग्रंथकारने उत्पाद व्यय और ध्रौव्य इन तीनोंको ही जो पर्यायस्वरूप बताया है वह हमारी समझमें नहीं आया। हम तो ऐसा समझते हैं कि उत्पाद और व्यय ये दोनों अंश पर्यायात्मक होते हैं किन्तु ध्रौव्यांश गुणात्मक जो तीनों मिलकर द्रव्य कहे जाते हैं।

उत्तर:- ठीक है, जहाँ क्रमभावी अंशका नाम पर्याय और सहभावी अंशका नाम गुण बताकर उनके समूहको द्रव्य कहा गया है वहाँ तो ऐसा ही समझना चाहिए परन्तु यहाँ तो आचार्यश्री ने अंशमात्रको पर्याय कहकर तदूवान्‌को वस्तु बतलाया है। द्रव्यमें गुण अनेक होते हैं जो हमारे ज्ञानमें भिन्न भिन्न आते हैं। जैसे पुद्गल द्रव्यके स्पर्श गुणको हम हाथसे छूकर जानते हैं। रस को जीभसे चखकर और गंधको नाकसे सूंघकर जानते हैं, इत्यादि ।

इसीतरह उस गुणके क्रम भी अपने अपने भिन्न भिन्न होते हैं। जैसे आम रूपकी अपेक्षा हरेसे पीला और रसकी अपेक्षा खट्टेसे मीठा बनता है। अनेक गुण और उनकी अनेक अवस्थाओंका समायोग द्रव्य है। अब यहाँ उस अनेक गुण और उनकी अनेक अवस्थाओं वाले द्रव्यमात्रको संक्षेपसे तीन भागों में विभक्त करके दिखा रहे हैं कि उत्पाद व्यय और धौव्य ये तीनों अंश, भाग, पर्याय एक साथ हो रहे हों, वही द्रव्य, वस्तु या अंशी है। शङ्काः-उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य ये तीनों एक ही समयमें कैसे बन कसते हैं क्योंकि होना और मिटना तो प्रकाश और अंधकारके समान परस्पर विरोधी हैं।

उत्तर:- ठीक है, किसी एकही बातका होना और मिटना तो एक साथ नहीं हो सकते हैं परन्तु किसी एक बातका होना तथा दूसरी का मिटना एवं तीसरीका बना रहना एक साथ क्यों नहीं हो सकता है? हम देखते हैं कि आमका खट्टापन मिटता है उसी समय उसमें मीठापन आता है और जिह्वेन्द्रियग्राहाता वैसीकी वैसी बनी रहती है, उसमें कोई अन्तर नहीं पड़ता है।
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प्रवचनसारः ज्ञेयतत्त्वाधिकार-गाथा - 9, 10 उत्पाद, व्यय व ध्रौव्य - by Manish Jain - 10-27-2022, 02:16 PM
RE: प्रवचनसारः ज्ञेयतत्त्वाधिकार-गाथा - 9, 10 उत्पाद, व्यय व ध्रौव्य - by sandeep jain - 10-28-2022, 08:02 AM
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