प्रवचनसारः ज्ञेयतत्त्वाधिकार-गाथा - 23 सप्तभंगी-जैन दर्शन का अनेकान्त दर्शन
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श्रीमत्कुन्दकुन्दाचार्यविरचितः प्रवचनसारः
आचार्य कुन्दकुन्द विरचित
प्रवचनसार : ज्ञेयतत्त्वाधिकार

गाथा -23 (आचार्य अमृतचंद की टीका अनुसार)
गाथा -125 (आचार्य प्रभाचंद्र की टीका अनुसार )



अत्थि त्ति य णथि त्ति य हवदि अवत्तव्यमिदि पुणो दब्वं ।
पज्जायेण दु केण वि तदुभयमादिट्ठमण्णं वा ॥ २३ ॥


अब सब तरहके विरोधोंको दूर करनेवाली सप्तभङ्गी वाणीको कहते हैं-[द्रव्यं] जो वस्तु है, वह [केनचित्पर्यायेण] किसी एक पर्यायसे [अस्तीति ] अस्तिरूप [भवति] है, [च] और किसी एक पर्यायसे [नास्तीति] वही द्रव्य नास्तिरूप है, [च] तथा [अवक्तव्यं इति] किसी एक प्रकारसे वचनगोचर नहीं है, [तु पुनः] और [तत् उभयं] किसी एक पर्यायसे वही द्रव्य अस्तिनास्तिरूप है, [वा] अथवा किसी एक पर्यायसे [अन्यत्] अन्य तीन भंगस्वरूप [आदिष्टं] कहा गया है। भावार्थ-द्रव्यकी सिद्धि सप्तभंगोंसे होती है, वे इस प्रकार हैं-स्वद्रव्य, स्वक्षेत्र, स्वकाल, स्वभाव, इस तरह अपने चतुष्टयकी अपेक्षा द्रव्य अस्तिरूप है १, परद्रव्यादि चतुष्टयकी अपेक्षा नास्तिरूप है २, एक कालमें 'अस्ति नास्ति' कह नहीं सकते, इस कारण वह अवक्तव्य है ३, क्रमसे वचनद्वारा अस्तिनास्तिरूप है ४, तथा द्रव्यमें स्यात् अस्त्यवक्तव्य चौथा भंग है, क्योंकि किसी एक प्रकार स्वचतुष्टयसे अस्तिरूप होता हुआ भी एक ही कालमें स्वपरचतुष्टयसे वचनद्वारा कहा नहीं जाता ५, और कथंचित् प्रकार परचतुष्टयसे नास्तिरूप हुआ भी एक ही समय स्वपरचतुष्टयकर वचनगोचर न होनेसे स्यान्नास्त्यवक्तव्य है ६, और किसी एक प्रकार स्वरूपसे अस्तिरूप-पररूपसे नास्तिरूप होता हुआ भी एक ही समयमें स्वपररूपकर वचनसे कह नहीं सकते, इस कारण स्यादस्तिनास्त्यवक्तव्य भंगरूप है ७॥ इस प्रकार अनंतगुणात्मक द्रव्य सप्तभंगसे सिद्ध हुआ । विधिनिषेधकी मुख्यता-गौणता करके यह सप्तभंगी वाणी 'स्यात्' पदरूप सत्यमंत्रसे एकांतरूप खोटे नयरूपी विष-मोहको दूर करती है

मुनि श्री प्रणम्य सागर जी  प्रवचनसार


पर्याय के वश किसी वह द्रव्य भी है , है , है न , है उभय , शब्द अतीत भी है।

औ शेष भंग मय भी वह है कहाता , ऐसा कथंचित् वही सबमें सुहाता ॥


अन्वयार्थ - ( दवं ) द्रव्य ( केण वि पज्जाएण दू ) किसी पर्याय से तो ( अत्थि त्ति य ) ‘ अस्ति ' ( णत्थि त्ति य ) और किसी पर्याय से ‘ नास्ति ' (पुणो) और (अवत्तव्वमिदि हवदि) किसी पर्याय से ‘ अवक्तव्य ' ( तदुभयं ) और किसी पर्याय से है ,‘ अस्ति - नास्ति ' (दोनों) (वा) अथवा ( अण्णं आदिई ) किसी पर्याय से अन्य तीन भंग रूप कहा गया है ।




Manish Jain Luhadia 
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