आंग बाह्य के १४ भेद
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आंग बाह्य के १४ भेद -

१-सामायिक,२-चतुर्विंशति स्तव,३-वंदना,४-प्रतिक्रमण,५-वैनयिक,६-कृतिकर्म,७-दशवैकालिकोंका,८-उत्तरा- ध्ययन,९-कल्प्य व्यवहार,१०-कल्पयाकल्प्य,११-महाकल्पय,१२-पुण्डरीक,१३-महापुण्डरीक,१४-निषिद्दिका!
आचार्य शुभ चन्द्र जी श्रुतज्ञान के २० भेद अन्य प्रकार से भी बताते है -
१-पर्याय,२-पर्यायसमास,३-अक्षर,४-अक्षर समॉस,५-पद,६-पदसमास,७-संघात,८-समास,९-प्रतिपत्तिक,१०-प्रतिपत्तिक समास,११-अनुयोग,१२-अनुयोग समास,१३-प्राभृत्-प्राभृत्,१४-प्राभृत्-प्राभृत् समास,१५-प्राभृत्, १६प्राभृत्-समास,१७-वस्तु,१८-वस्तुसमास,१९-पूर्व,२०-पूर्वसमास!
१-पर्यायज्ञान-सूक्ष्म निगोदिया लब्धपर्याप्तक जीव के जघन्य ज्ञान को पर्यायज्ञान कहते है!इसको लब्द्धयाक्षर रूप श्रुतज्ञान भी कहते है क्योकि इसका विनाश कभी नहीं होता!जब यह सूक्ष्म लब्द्धपर्याप्तक जीव ६०१२ क्षुद्र भव पूर्ण कर,अपर्याप्तक शरीर को,तीन मोडोओ के द्वारा ग्रहण कर उत्पन्न होता है,तो उस समय उसके स्पर्शन इन्द्रियजन्य मतिज्ञानपूर्वक,लब्धयअक्षर रूप श्रुतज्ञान होता है!लब्धि का अर्थ है- श्रुतज्ञानावरण का क्षयोपशम और अक्षर का मतलब अविनश्वर है!न्यूनतम,इतना क्षयोपशम प्रत्येक जीव के रहता है!कुछ ग्रंथों मे पर्याय ज्ञान से कुछ अधिक को लब्ध्याक्षरज्ञान कहा है !
पर्याय समास ज्ञान -यह जघन्य पर्यायज्ञान भी अगुरुलघुगुण के अविभागी प्रतिच्छेदों की अपेक्षा,अष्टांक(अनंतगुणवृद्धि)प्रमाण होता है!सर्व जघन्य पर्याय ज्ञान के ऊपर,क्रम से अनन्त भागबृद्धि(उर्वांक),असंख्यातभागवृद्धि (चतुरंक), संख्यातभागवृद्धि (पंचांक),संख्यातगुणवृद्धि(षडंक),असंख्यातगुणवृद्धि(सप्तांक) और अनंत गुणवृद्धि(अष्टांक) रूप छ: वृद्धि होती है !सूच्यंगुल के असंख्यातवे भाग का जितना प्रमाण है, उतनी बार अनंत भागवृद्धि होने पर । एक बार असंख्यात भाग वृद्धि होती है,इसके अनन्तर पुन:सूच्यंगुल के असंख्यातवे भाग का जितना प्रमाण है,उतनी बार अनंत भागवृद्धि होने पर पुन: एक बार असंख्यात भाग बृद्धि! इसी प्रकार असंख्यात भागवृद्धि भी जब सूच्यंगुल के असंख्यातवे भाग प्रमाण बार हो जाए तब सूच्यंगुल के असंख्यातवे भाग प्रमाण अनंत भागवृद्धि पर एक बार संख्यात भाग वृद्धि होती है !इस प्रकार अन्त की वृद्धि पर्यन्त जानना चाहिए !इस प्रकार अनक्षरात्मक जघन्य पर्याय ज्ञान के ऊपर असंख्यात लोक प्रमाण षट स्थान होते है !
ये सब पर्याय समास ज्ञान है !
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