अंग प्रविष्ट के बारह भेद
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अंग प्रविष्ट के बारह भेद -
१-आचाराङ्ग-आचारांग में चर्या का विधान,आठ शुद्धि,पांच समिति,तीन गुप्ती आदि रूप से वर्णित है !
२-सूत्रकृतांग- इसमें ज्ञान-विनय,क्या कल्प्य है और क्या अकल्प्य है,छेदोपस्थापना ,व्यवहार धर्म की क्रिया का निरूपण है !
३-स्थानाङ्ग-इसमें एक-एक ,दो-दो आदि रूप में अर्थों का वर्णन है !
४-संवायांग -इसमें सब पदार्थों की समानता रूप से समवाय का विचार किया गया है!जैसे धर्म-अधर्म, लोकाकाश और एक जीव के तुल्य असंख्यात प्रदेश होने से इनको द्रव्य रूप से समवाय कहा जाता है !
५-व्याख्या प्रज्ञप्ति-इसमें जीव है या नहीं पर ६० हज़ार प्रश्नो के उत्तर है !
६-ज्ञातृ धर्मकथा -इसमें अनेक आख्यान और उपाख्यान का निरूपण है !
७-उपासाकाध्यय नांग -इसमें श्रावक धर्म का विशेष विवेचन किया गया है !
८-अंत:कृद्दशांग -इसमें प्रत्येक तीर्थंकर के काल में होने वाले दश -दश अंतकृत् केवलियों का वर्णन है जिनको भयंकर उपसर्ग सहने के बाद मुक्ति मिली थी !
९-अनुत्तरोत्पादिकदशांग -इनमे प्रत्येक तीर्थंकर के समय हुए उन दश दश मुनिया का वर्णन है जिन्होंने दारुण उपसर्गों को सहकर,पांच अनुत्तर विमानों में जन्म लिया !
१०-प्रश्न व्यकराणांग - इसमें युक्ति और नयों के द्वारा अनेक आक्षेप और विक्षेप रूप प्रश्नों का उत्तर दिया गया है !
११-विपाकसूत्रांग- इसमें पुण्य और पाप के विपाक का विचार किया गया है !
१२-दृष्टिप्रवाद-इसमें ३६३ मतो का निरूपण पूर्वक खंडन किया गया है!दृष्टिवाद के निम्न पांच भेद है !

१-परिक्रम-के पांच भेद -
(क)व्याख्याप्रज्ञप्ति-इसमें पुद्गल,धर्म,अधर्म,आकाश और काल,भव्य सिद्ध,अभव्यसिद्ध जीव का वर्णन है !
(ख)द्वीपसागरप्रज्ञप्ति-इसमें द्वीप और समुद्रों के प्रमाण का तथा उनके अंतर्गत नाना प्रकार के दुसरे पदार्थों का वर्णन है !
(ग)जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति -इसमें भोगभूमि और कर्म भूमि में उत्पन्न हुए नाना प्रकार के मनुष्यों तथा अन्य तिर्यन्चों,पर्वत,दृह ,नदी,आदि का वर्णन है !
(घ)सूर्यप्रज्ञप्ति-इसमें सूर्य की आयु,भोग,उपभोग,परिवार,ऋद्धि,गति और बिम्ब आदि की ऊंचाई का वर्णन है !
(ङ )चन्द्रप्रज्ञप्ति -इसमें चन्द्रमा की आयु,परिवार,ऋद्धि,गति और बिम्ब की ऊँची आदि का वर्णन है !

२-सूत्र-सूत्र नाम का अर्थाधिकार जीव अबंधक है,अभोक्ता है,अकर्ता है,अलपक है ,इत्यादि रूप से ३६३ भेड़ों का खंडन करता है

३-प्रथमानुयोग-में ६३ श्लाखा पुरुषों का वर्णन पुराण रूप में है !

४-पूर्वगत-पूर्वगत के निम्न १४ भेद है -,

१-उत्पाद पूर्व-इसमें जीव पुद्गलादि का जहाँ जब जैसा उत्पाद होता है उन सब का वर्णन है !
२-अग्रायणी पूर्व-इसमें क्रियावाद आदि की प्रक्रिया और स्वासमय का वर्णन है !
३-वीर्यनुवाद -इसमें छद्मस्थ और केवली की शक्ति,सुरेन्द्र असुरेंद्र आदि की ऋद्धियों ,नरेंद्र चक्रवर्ती ,बलदेव आदि की सामर्थ्य ,द्रव्यों के लक्षण आदि का निरूपण है !
४-अस्तिनास्ति प्रवाद- में पांचो आस्तिकाय और नयों का अस्ति-नास्ति आदि अनेक पर्यायों द्वारा विवेचन है !
५ -ज्ञान प्रवाद-पांचो ज्ञान और इन्द्रियों का विभाग का निरूपण है !
६-सत्य प्रवाद-में पूर्व में वाग गुप्ती,वचन संस्कार के कारण ,वचन प्रयोग बारह प्रकार की भाषाए ,दस प्रकार के सत्य,वक्त के भेद,आदि का विस्तार से विवेचन है !
७-आत्म प्रवाद- में आत्म द्रव्य का छह जीव निकायों का अस्ति नास्ति आदि विविध भंगो का निरूपण है !
८-कर्म प्रवाद -कर्मो के बंध,उदय ,उपशम,आदि दशाओं और स्थिति आदि का वर्णन है !
९-प्रत्याख्यान प्रवाद-में व्रत,नियम,प्रतिक्रमण,तप,आराधना,आदि तथा मुनित्व में कारण द्रव्यों के त्याग का विवेचन है !
१०-कल्याणानुवाद पूर्व-में सूर्य,चन्द्र,गृह,नक्षत्र,और तारागणों के चार क्षेत्र,उपपादस्थान,गति,वक्रगति तथा उनके फलों का,पक्षी के शब्दों अ और अरिहंत अर्थात तीर्थंकर ,बलदेव,वासुदेव,और चक्रवर्ती आदि के गर्भवतार आदि महाकल्याणकों का वर्णन है !
११-विद्यानुवादपूर्व में समस्त विद्याओं ,आठ महा निमित्त,रज्जु राशि विधि,क्षेत्र,श्रेणी,लोक प्रतिष्ठा,समुद्घाट,आदि का विवेचन है !
१२-प्राणानुवाद पूर्व -शरीर चिकित्सा आदि अष्टांग ,आयुर्वेद,भूतिकर्म ,जांगुलिक कर्म (विष विद्या ) और प्राणायाम के भेद प्रभेदों का विस्तार से वर्णन है !
१३-क्रिया विशाल पूर्व-लेखन आदि ७२ कलाओं का स्त्री सम्बन्धी चौसठ गुणों का,शिल्पकला का,काव्य संबंधी गुण दोष विधि का और छंद निर्माण कला का विवेचन है !
१४-लोक बिन्दुसार-में आठ व्यवहार,चार बीज,राशि परिकर्म आदि गणित तथा समस्त श्रुत संपत्ति का वर्णन है !
चूलिका-के पांच भेद

१-जलगता-जल में गमन जल स्तम्भन के कारण भूत मंत्र ,तंत्र और तपश्चरण रूप अतिशय आदि का वर्णन करती है !
२-स्थलगता-पृथ्वी के भीतर गमन करने के कारण भूत मंत्र तंत्र दुसरे शुभ अशुभ कारणों का वर्णन करती है !
३-मायागता-इंद्रजाल आदि के कारण भूत मंत्र और तपश्चरण का वर्णन करती है !
४-रूपगता-सिंह,घोडा,हिरण आदि के स्वरुप के आकार रूप से परिणमन करने के कारण भूत मत्र-तंत्र और तपश्चरण तथा चित्र काष्ठ लेप्य लें कर्म आदि के लक्षण का वर्णन करती है !
५-आकाशगता-आकाश में गमन करने के कारण भूत मंत्र तंत्र और तपश्चरण का वर्णन करती है
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