देवदर्शन की विधि
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देवदर्शन की आगमोक्त विधि इसप्रकार है -

१. सर्वप्रथम जिनमंदिर जी के प्रांगण में पहुँच कर प्रासुक जल से अपने हाथ पाँव धो लेना चाहिए ।
२. यदि प्रांगण में श्री मानस्तम्भ की रचना हो तो उसकी ३ प्रदक्षिणा देकर एक पंचांग नमस्कार करें ।
३. मंदिर जी के मुख्य दरवाजे के पास पहुँच कर ३ बार घंटा बजायें ।
४. मंदिर जी की देहली को दाहिने हाथ से स्पर्श करते हुए प्रणाम करें और दाहिने पैर से भीतर प्रवेश करें ।
५. 'ॐ जय जय जय । नि:सहि नि:सहि नि:सहि ।' ऐसा बोलते हुए श्री मंदिर जी में प्रवेश करें ।
६. मुख्य वेदी के पास जाकर महिलाएं भगवान के बायें हाथ की ओंर तथा पुरुष भगवान के दायें हाथ की ओंर जाकर भगवान के दर्शन करें अर्थात् उनकी शांत मुद्रा का अवलोकन करें ।
७. उसी स्थान पर नीचे बैठकर पहला पंचांग नमस्कार करें ।
८. खड़े होकर हाथ जोड़कर देवदर्शन स्तुति प्रारम्भ करें तथा स्तुति बोलते हुए गर्भालय या वेदी की ३ प्रदक्षिणा लगायें ।
९. पुनः अपने स्थान पर आकर श्री जी को दूसरा पंचांग नमस्कार करें ।
१०. खड़े होकर भगवान को घर से लाया हुआ द्रव्य विधिपूर्वक चढ़ाए ।
११. एक कायोत्सर्ग करें ।
१२. श्री जी को तीसरा पंचांग नमस्कार करें एवं अपने मंगलमय भविष्य के लिए प्रार्थना करें ।
१३. भगवान के दर्शन पूर्ण कर मंदिर जी में विराजमान श्री जिनशासन यक्ष और यक्षिणी को अर्घ्य चढ़ाकर उन्हें नमस्कार करें ।
१४. श्री जिनेन्द्र भगवान के अभिषेक का गंधोदक आदर और भक्ति सहित उत्तमांगों पर लगायें ।

इसप्रकार देवदर्शन विधि पूर्ण करने के बाद यदि आपके पास और भी समय हो तो पूर्व या उत्तर दिशा में मुख कर के भक्तामर स्तोत्र का पाठ या णमोकार महामंत्र की माला करें । लौटते समय भगवान की वेदी को पीठ न दिखाते हुए दाहिने पैर से 'अस्सहि अस्सहि अस्सहि' ऐसा बोलते हुए मंदिर जी से बाहर निकलें ।

प्रवचनांश - पूज्य मुनि श्री अमोघकीर्ति जी.
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