समवसरण
#1

प्रश्न 1 -समवसरण किसे कहते हैं ?
उत्तर -तीर्थंकर भगवान की धर्मसभा को समवसरण कहते हैं।
प्रश्न 2 -तीर्थंकर की यह धर्मसभा कब बनती है ?
उत्तर -जब उन्हें तपस्या के पश्चात् केवलज्ञान प्रगट होता है, तब समवसरण की रचना होती है।
प्रश्न 3-इस समवसरण रचना का निर्माण कौन करता है ?प्र
उत्तर -सौधर्म इन्द्र की आज्ञा से धनकुबेर समवसरण की रचना करता है।
प्रश्न 4 -समवसरण धरती पर बनता है या आकाश में ?
उत्तर -धरती से बीस हजार हाथ की ऊँचाई पर आकाश में अधर समवसरण की रचना बनती है।
प्रश्न 5 -उस ऊँचाई तक मनुष्य कैसे पहुँचते हैं ?
उत्तर -पृथ्वी से लेकर समवसरण तक १-१ हाथ की बीस हजार सीढ़ियाँ होती हैं जिन्हें प्रत्येक प्राणी अन्तर्मुहूर्त में चढ़कर समवसरण में पहुँचते हैं और भगवान की दिव्यध्वनि का पान करते हैं।
प्रश्न 6-समवसरण की सभा किस आकार में बनती है ?
उत्तर -समवसरण गोलाकार बनता है।
प्रश्न 7-समवसरण में कितनी भूमियाँ होती हैं ?
उत्तर -समवसरण में आठ भूमियाँ होती हैं।
प्रश्न 8-उनके नाम क्या हैं ?
उत्तर -उन आठ भूमियों के नाम इस प्रकार हैं-१. चैत्यप्रासाद भूमि २. खातिका भूमि ३. लताभूमि ४. उपवनभूमि ५. ध्वजाभूमि ६. कल्पवृक्षभूमि ७. भवनभूमि ८.श्रीमण्डपभूमि।
प्रश्न 9-इन आठ भूमियों में तीर्थंकर भगवान कहाँ विराजमान रहते हैं ?
उत्तर -समवसरण में जो आठवीं श्रीमण्डपभूमि है उसके बीचोंबीच तीन कटनी से सहित गंधकुटी में तीर्थंकर भगवान विराजमान होते हैं।
प्रश्न 10-बारह सभाएँ उस समवसरण में कहाँ लगती हैं ?
उत्तर -उसी आठवीं श्रीमण्डपभूमि केअंदर गंधकुटी के बाहर चारों ओर गोलाकार में ही बारह सभाएँ लगती हैं।
प्रश्न 11 -समवसरण की बारह सभाओं का क्रम किस प्रकार रहता है ?
उत्तर -बारह सभाओं का क्रम इस प्रकार रहता है-१. गणधर मुनि २. कल्पवासिनी देवी ३. आर्यिका और श्राविका ४. ज्योतिषी देवी ५. व्यन्तर देवी ६. भवनवासिनी देवी ७. भवनवासी देव ८. व्यन्तर देव ९. ज्योतिषीदेव १०. कल्पवासी देव ११. चक्रवर्ती आदि मनुष्य १२. सिंहादि तिर्यंच प्राणी। इन बारह कोठों मेंअसंख्यातों भव्यजीव बैठकर धर्मोपदेश सुनकर अपना कल्याण करते हैं।
प्रश्न 12 -सभी तीर्थंकरों के समवसरणों की व्यवस्था एक समान ही रहती है या कुछ भिन्नता रहती है ?
उत्तर -समवसरण रचना की व्यवस्था तो सबकी एक समान ही रहती है उसमें कोई अन्तर नहीं होता है। केवल तीर्थंकर की अवगाहना के अनुसार उनके समवसरण बड़े-छोटे अवश्य होते हैं। जैसे-भगवान ऋषभदेव की अवगाहना ५०० धनुष की थी अत: उनका समवसरण १२ योजन (९६ मील) का था और भगवान महावीर की अवगाहना ७ हाथ की थी अत: उनका समवसरण१ योजन (८ मील) में बना था।
प्रश्न 13-समवसरण का वास्तविक अर्थ क्या है ?
उत्तर -समस्त प्राणियों को शरण प्रदान करने वाला समवसरण कहलाता है।
प्रश्न 14-समवसरण की मुख्य विशेषता क्या होती है ?
उत्तर -समवसरण में जन्मजात विरोधी प्राणी भी मैत्रीभाव धारण कर आपसी प्रेम का परिचय प्रदान करते हैं। जैसे-शेर और गाय एक घाट पर पानी पीतेहैं, सर्प-नेवला भी एक-दूसरे को कोई हानि नहीं पहुँचाते हैं।
प्रश्न 15-समवसरण में मानस्तंभ कहाँ होते हैं ?
उत्तर -समवसरण के प्रवेश ध्वार पर ही चारों दिशा में एक-एक मानस्तंभ होते हैं।
प्रश्न 16-मानस्तंभ का क्या अर्थ है ?उत्तर -जहाँ पहुँचते ही मनुष्य का मान गलित होकर सम्यग्दर्शन उत्पन्न हो जाता है उन्हें मानस्तंभ कहते हैं। जैसे इन्द्रभूति गौतम का वहाँ पहुँचते ही मान गलित हुआ एवं उन्होंने तुरंत जैनेश्वरी दीक्षा ग्रहण कर गणधर का पद प्राप्त कर लिया था।
प्रश्न 17 -समवसरण में विराजमान अर्हन्त भगवान के कितने प्रातिहार्य होते हैं ?
उत्तर -अर्हन्त भगवान के आठ प्रातिहार्य होते हैं-1. अशोक वृक्ष 2. सिंहासन 3. तीन छत्र .4. भामंडल 5. दिव्यध्वनि 6. पुष्पवृष्टि 7. चौंसठ चंवर 8. दुदुभि बाजे।
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सभी जीवों के कल्याण के लिये और धर्म की स्थापना के लिए जहाँ भी तीर्थंकर भगवंत जाते हैं, वही पर जीवों के अंदर धर्म की स्थापना के लिए समवशरण की रचना होती जाती है. 
तीर्थंकर भगवान जहाँ पर भी चलते हैं, या रुकते हैं, वहीं पर ही उनके प्रभाव से 100 योजन यानी कि लगभग 1280 किलोमीटर आगे, पीछे, दायें, बाएं यानी कि चारो दिशाओं में 2560 किलोमीटर व्यास के गोलाकार क्षेत्र में रहने वाले सभी मनुष्य और पशु-पक्षी अपना हिंसक स्वभाव भूल कर काम-क्रोध आदि भूल जाते हैं और सात्विक सरल स्वभाव और वृत्तियों को धारण कर लेते हैं, 
यहाँ तक कि शेर भी गाय को मारने और खाने का अपना हिंसक स्वभाव भूल कर उसके साथ रहने लगता है और दोनों एक साथ ही खाने-पीने लगते हैं. 
तीर्थंकर भगवान हमेशा निःशस्त्र और निर्वस्त्र ही रहते हैं, फिर भी वे निर्भय रहते हैं, क्योकि उनके आसपास के 2500 किलोमीटर डायमीटर के क्षेत्र में रहने वाले सभी जीवों के मन में किसी को भी मारने के भाव ही उपजते नहीं हैं. 
यह है सच्चे भगवान की महिमा कि उनके आसपास के हजारो किलोमीटर के प्रभा-मंडल में आने वाले सभी लोगो के मन में भाई-चारे और एक-दूसरे के लिए कल्याण के विचार आने लगते हैं. यहाँ तक कि जानवर भी अपना हिंसक स्वभाव भूल के प्रेम करने लग जाते हैं. 
इस तरह तीर्थंकर भगवान सभी जीवों को उनके सच्चे धर्म से, सात्विक वृत्तियों से उनका परिचय करवाते रहते हैं, 
यह है तीर्थंकर भगवान की महिमा, शक्ति और धर्म की सच्ची स्थापना.
जब भगवान समवशरण में विराजमान होते हैं, तब चारों दिशाओं से 12 योजन या लगभग 150 किलोमीटर से ही पहले से ही तीर्थंकर भगवान के लोगों को दर्शन होने लगते हैं.
तीर्थंकर भगवान समवशरण में केवलज्ञान प्राप्त करने के बाद बोलते नहीं हैं. फिर भी उनके शरीर के माध्यम से ॐ की ध्वनि सुनाई देती है और उसमें पूछने वाले सभी मनुष्य, तिर्यंच और देवों के सभी प्रश्नों के उत्तर उनकी अपनी-अपनी 700 तरह की भाषाओं में मिल जाते हैं. 
हमको भी सभी प्रश्नों के उत्तर हमारी अपनी ही भाषा में मिल जाते हैं. इसी को भगवान का उपदेश कहा जाता है. 
जब हम समवशरण में जाते हैं, तब हमको भगवान के पीछे के भामंडल में हमारे तीन पूर्व के भव, एक वर्तमान का भव और तीन आगे आने वाले भव; इस तरह कुल सात भव दिखते हैं. साथ ही हमारे सभी प्रश्नों के उत्तर भी मिल जाते हैं. इस तरह हम वहां से पूर्ण संतुष्ट होकर ही बाहर आते हैं. अधिकांश बार तो वहां पर सामान्य मनुष्य भगवान के इस अतिशय या चमत्कार को देखने और अपने भविष्य को जानने के लिए ही जाते हैं. 
यह जो हमारे देश में सात जन्मों का बंधन कहा जाता है, वह भी चूँकि भगवान के समवशरण में हर एक व्यक्ति को उसके सात भव दिखते हैं, इसलिए यह कथन प्रचलित हो गया है कि सात जन्मों का बंधन होता है.
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(01-16-2015, 07:02 AM)scjain Wrote:  प्रश्न 1 -समवसरण किसे कहते हैं ?
उत्तर -तीर्थंकर भगवान की धर्मसभा को समवसरण कहते हैं।
प्रश्न 2 -तीर्थंकर की यह धर्मसभा कब बनती है ?
उत्तर -जब उन्हें तपस्या के पश्चात् केवलज्ञान प्रगट होता है, तब समवसरण की रचना होती है।
प्रश्न 3-इस समवसरण रचना का निर्माण कौन करता है ?प्र
उत्तर -सौधर्म इन्द्र की आज्ञा से धनकुबेर समवसरण की रचना करता है।
प्रश्न 4 -समवसरण धरती पर बनता है या आकाश में ?
उत्तर -धरती से बीस हजार हाथ की ऊँचाई पर आकाश में अधर समवसरण की रचना बनती है।
प्रश्न 5 -उस ऊँचाई तक मनुष्य कैसे पहुँचते हैं ?
उत्तर -पृथ्वी से लेकर समवसरण तक १-१ हाथ की बीस हजार सीढ़ियाँ होती हैं जिन्हें प्रत्येक प्राणी अन्तर्मुहूर्त में चढ़कर समवसरण में पहुँचते हैं और भगवान की दिव्यध्वनि का पान करते हैं।
प्रश्न 6-समवसरण की सभा किस आकार में बनती है ?
उत्तर -समवसरण गोलाकार बनता है।
प्रश्न 7-समवसरण में कितनी भूमियाँ होती हैं ?
उत्तर -समवसरण में आठ भूमियाँ होती हैं।
प्रश्न 8-उनके नाम क्या हैं ?
उत्तर -उन आठ भूमियों के नाम इस प्रकार हैं-१. चैत्यप्रासाद भूमि २. खातिका भूमि ३. लताभूमि ४. उपवनभूमि ५. ध्वजाभूमि ६. कल्पवृक्षभूमि ७. भवनभूमि ८.श्रीमण्डपभूमि।
प्रश्न 9-इन आठ भूमियों में तीर्थंकर भगवान कहाँ विराजमान रहते हैं ?
उत्तर -समवसरण में जो आठवीं श्रीमण्डपभूमि है उसके बीचोंबीच तीन कटनी से सहित गंधकुटी में तीर्थंकर भगवान विराजमान होते हैं।
प्रश्न 10-बारह सभाएँ उस समवसरण में कहाँ लगती हैं ?
उत्तर -उसी आठवीं श्रीमण्डपभूमि केअंदर गंधकुटी के बाहर चारों ओर गोलाकार में ही बारह सभाएँ लगती हैं।
प्रश्न 11 -समवसरण की बारह सभाओं का क्रम किस प्रकार रहता है ?
उत्तर -बारह सभाओं का क्रम इस प्रकार रहता है-१. गणधर मुनि २. कल्पवासिनी देवी ३. आर्यिका और श्राविका ४. ज्योतिषी देवी ५. व्यन्तर देवी ६. भवनवासिनी देवी ७. भवनवासी देव ८. व्यन्तर देव ९. ज्योतिषीदेव १०. कल्पवासी देव ११. चक्रवर्ती आदि मनुष्य १२. सिंहादि तिर्यंच प्राणी। इन बारह कोठों मेंअसंख्यातों भव्यजीव बैठकर धर्मोपदेश सुनकर अपना कल्याण करते हैं।
प्रश्न 12 -सभी तीर्थंकरों के समवसरणों की व्यवस्था एक समान ही रहती है या कुछ भिन्नता रहती है ?
उत्तर -समवसरण रचना की व्यवस्था तो सबकी एक समान ही रहती है उसमें कोई अन्तर नहीं होता है। केवल तीर्थंकर की अवगाहना के अनुसार उनके समवसरण बड़े-छोटे अवश्य होते हैं। जैसे-भगवान ऋषभदेव की अवगाहना ५०० धनुष की थी अत: उनका समवसरण १२ योजन (९६ मील) का था और भगवान महावीर की अवगाहना ७ हाथ की थी अत: उनका समवसरण१ योजन (८ मील) में बना था।
प्रश्न 13-समवसरण का वास्तविक अर्थ क्या है ?
उत्तर -समस्त प्राणियों को शरण प्रदान करने वाला समवसरण कहलाता है।
प्रश्न 14-समवसरण की मुख्य विशेषता क्या होती है ?
उत्तर -समवसरण में जन्मजात विरोधी प्राणी भी मैत्रीभाव धारण कर आपसी प्रेम का परिचय प्रदान करते हैं। जैसे-शेर और गाय एक घाट पर पानी पीतेहैं, सर्प-नेवला भी एक-दूसरे को कोई हानि नहीं पहुँचाते हैं।
प्रश्न 15-समवसरण में मानस्तंभ कहाँ होते हैं ?
उत्तर -समवसरण के प्रवेश ध्वार पर ही चारों दिशा में एक-एक मानस्तंभ होते हैं।
प्रश्न 16-मानस्तंभ का क्या अर्थ है ?उत्तर -जहाँ पहुँचते ही मनुष्य का मान गलित होकर सम्यग्दर्शन उत्पन्न हो जाता है उन्हें मानस्तंभ कहते हैं। जैसे इन्द्रभूति गौतम का वहाँ पहुँचते ही मान गलित हुआ एवं उन्होंने तुरंत जैनेश्वरी दीक्षा ग्रहण कर गणधर का पद प्राप्त कर लिया था।
प्रश्न 17 -समवसरण में विराजमान अर्हन्त भगवान के कितने प्रातिहार्य होते हैं ?
उत्तर -अर्हन्त भगवान के आठ प्रातिहार्य होते हैं-1. अशोक वृक्ष 2. सिंहासन 3. तीन छत्र .4. भामंडल 5. दिव्यध्वनि 6. पुष्पवृष्टि 7. चौंसठ चंवर 8. दुदुभि बाजे।

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सभी जीवों के कल्याण के लिये और धर्म की स्थापना के लिए जहाँ भी तीर्थंकर भगवंत जाते हैं, वही पर जीवों के अंदर धर्म की स्थापना के लिए समवशरण की रचना होती जाती है. 
तीर्थंकर भगवान जहाँ पर भी चलते हैं, या रुकते हैं, वहीं पर ही उनके प्रभाव से 100 योजन यानी कि लगभग 1280 किलोमीटर आगे, पीछे, दायें, बाएं यानी कि चारो दिशाओं में 2560 किलोमीटर व्यास के गोलाकार क्षेत्र में रहने वाले सभी मनुष्य और पशु-पक्षी अपना हिंसक स्वभाव भूल कर काम-क्रोध आदि भूल जाते हैं और सात्विक सरल स्वभाव और वृत्तियों को धारण कर लेते हैं, 
यहाँ तक कि शेर भी गाय को मारने और खाने का अपना हिंसक स्वभाव भूल कर उसके साथ रहने लगता है और दोनों एक साथ ही खाने-पीने लगते हैं. 
तीर्थंकर भगवान हमेशा निःशस्त्र और निर्वस्त्र ही रहते हैं, फिर भी वे निर्भय रहते हैं, क्योकि उनके आसपास के 2500 किलोमीटर डायमीटर के क्षेत्र में रहने वाले सभी जीवों के मन में किसी को भी मारने के भाव ही उपजते नहीं हैं. 
यह है सच्चे भगवान की महिमा कि उनके आसपास के हजारो किलोमीटर के प्रभा-मंडल में आने वाले सभी लोगो के मन में भाई-चारे और एक-दूसरे के लिए कल्याण के विचार आने लगते हैं. यहाँ तक कि जानवर भी अपना हिंसक स्वभाव भूल के प्रेम करने लग जाते हैं. 
इस तरह तीर्थंकर भगवान सभी जीवों को उनके सच्चे धर्म से, सात्विक वृत्तियों से उनका परिचय करवाते रहते हैं, 
यह है तीर्थंकर भगवान की महिमा, शक्ति और धर्म की सच्ची स्थापना.
जब भगवान समवशरण में विराजमान होते हैं, तब चारों दिशाओं से 12 योजन या लगभग 150 किलोमीटर से ही पहले से ही तीर्थंकर भगवान के लोगों को दर्शन होने लगते हैं.
तीर्थंकर भगवान समवशरण में केवलज्ञान प्राप्त करने के बाद बोलते नहीं हैं. फिर भी उनके शरीर के माध्यम से ॐ की ध्वनि सुनाई देती है और उसमें पूछने वाले सभी मनुष्य, तिर्यंच और देवों के सभी प्रश्नों के उत्तर उनकी अपनी-अपनी 700 तरह की भाषाओं में मिल जाते हैं. 
हमको भी सभी प्रश्नों के उत्तर हमारी अपनी ही भाषा में मिल जाते हैं. इसी को भगवान का उपदेश कहा जाता है. 
जब हम समवशरण में जाते हैं, तब हमको भगवान के पीछे के भामंडल में हमारे तीन पूर्व के भव, एक वर्तमान का भव और तीन आगे आने वाले भव; इस तरह कुल सात भव दिखते हैं. साथ ही हमारे सभी प्रश्नों के उत्तर भी मिल जाते हैं. इस तरह हम वहां से पूर्ण संतुष्ट होकर ही बाहर आते हैं. अधिकांश बार तो वहां पर सामान्य मनुष्य भगवान के इस अतिशय या चमत्कार को देखने और अपने भविष्य को जानने के लिए ही जाते हैं. 
यह जो हमारे देश में सात जन्मों का बंधन कहा जाता है, वह भी चूँकि भगवान के समवशरण में हर एक व्यक्ति को उसके सात भव दिखते हैं, इसलिए यह कथन प्रचलित हो गया है कि सात जन्मों का बंधन होता है.
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