सामायिक
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     सामायिक 
[ltr]समता आत्मा को कहते हैं । आत्मा के गुणों का चिंतन कर समता ( समभाव ) का अभ्यास करना सामायिक है । सुख-दुख, लाभ- हानि मान-अपमान, जीवन-मरण, निन्दा-प्रशंसा, शत्रुता-मित्रता आदि विषमताओं में राग-द्वेष नहीं कर समता स्वभावी आत्मा में स्थिर रहना सामायिक है ।[/ltr]
श्रावक व साधु दोनों के द्वारा सामायिक की जाती है । श्रावक की सामायिक नियत काल पर्यन्त होती है । साधु का जीवन ही समतामय होता है । फिर भी वह प्रतिदिन संध्या कालों में सामायिक करता है ।

साधुओं के लिए 6 आवश्यक में सामायिक भी है ।
सामायिक मंदिर, वन, पर्वत, उद्यान आदि ऐसे स्थान पर की जाती है, जहाँ कोलाहल नहीं हो अर्थात शांत वातावरण हो और जहाँ पर अत्यधिक सर्दी, गर्मी, वर्षा का प्रकोप तथा मच्छर, डांस, बिच्छू आदि जन्य बाधाएँ नहीं हो । यदि सामायिक के बीच में ऐसी कोई बाधा या अन्य प्रकार का उपसर्ग आ भी जावे तो उसे सहन करना होता है ।
सामायिक खड़े होकर या बैठकर, पूर्व अथवा उत्तर की ओर मुँह करके तथा गोद में बायें हाथ के ऊपर दायां हाथ रखकर की जाती है । सामायिक के प्रारंभ व अंत में चारों दिशाओं में से प्रत्येक दिशा में उस दिशा संबंधी मुनिराज, चैत्यालय आदि की वंदना करते हुए एक प्रणाम, तीन आवर्त ( जोड़े हुए हाथों को बाईं ओर से दाहिनी ओर गोलाकार घुमाना ) और एक शिरोनति ( जोड़े हुए हाथों पर सिर रखकर झुकाना ) की जाती है । उसके बाद बैठकर या खड़े होकर कम से कम 2 घड़ी ( 48 मिनिट ) तक आत्मचिंतन आदि करते हैं । अन्त में पुनः उपरोक्तानुसार चारों दिशाओं में प्रणाम, आवर्त व शिरोनति की जाती है ।
सामायिक के समय सभी प्रकार के परिग्रहों तथा विकल्पों से रहित होकर तत्त्वों, बारह भावनाओं, निज स्वरूप आदि का चिंतन किया जाता है । यह भी चिंतन किया जाता है कि इस संसार में दुःख ही दुःख है, सुख नहीं है, कोई शरण नहीं है, सभी क्षणभंगुर है और मोक्ष ही शरण भूत, शुभ व सुख रूप है । जिनवाणी, जिनबिम्ब, पंचपरमेष्ठी तथा कृत्रिम – अकृत्रिम चैत्यालय का भी ध्यान किया जाता है ।
सामायिक प्रतिदिन तीनों संध्या कालों ( सुबह , दोपहर , सायं ) में कम से कम 2 घड़ी 48 मिनिट और अधिकतम 6 घड़ी तक की जाती है । श्रावक को प्रतिदिन कम से कम एकबार प्रातः सामायिक करनी चाहिए । यदि वह दो प्रतिमा धारी है तो उसे दिन में दो बार ( सुबह और सायं ) और तीन प्रतिमा धारी है तो उसे दिन में ३ बार करनी होती है ।
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