हम देव दर्शन क्यों करते है ?
#1

हम देव दर्शन क्यों करते है ?

दर्शन का व्यवहार से अर्थ है वंदन करना 
नमस्कार करना I
यह नमस्कार क्यों कहा है ?
ये नमस्कार किसे किया है ?
यह नमस्कार करनेसे क्या लाभ होता है ?
दर्शनं देव देवस्य , दर्शनं पाप नाशनम I
दर्शनं स्वर्ग सोपानम , दर्शनं मोक्ष साधनं IIII
दर्शनेन जिनेंद्राणां, साधुनां वन्दनेन I
चिरं तिष्ठति पापं , छिद्रहस्ते यथोदकं IIII
यह नमस्कार किसे किया है ?
नमस्कार देव को कहा है I
नमस्कार साधू को भी कहा है I
देव किसे कहा है ?
जिनेद्र भगवान को देव कहा है I
देव के दर्शन करनेसे
. पापोंका नाश होता है I
. स्वर्ग की प्राप्ति होती है I
. मोक्ष की प्राप्ति होती है I
वीतरागमुखं दृष्ट्वा,पद्मरागसमप्रभम I
नैकजन्मकृतं पापं, दर्शनें विनश्यति IIII
दर्शनं जिनसूर्यस्य , संसारध्वांतनाशनं I
बोधनं चित्तपद्मस्य, समस्तार्थप्रकाशनं IIII
दर्शनं जिनचन्द्रस्य , सद्धर्मामृतवर्षणम् 
जन्मदाहविनाशाय , वर्धनम सुखवारिधे IIII
# जिनेद्र भगवान कैसे है ?
@ जिनेन्द्र भगवान वीतरागी है I
वे रागद्वेष आदि १८ दोषोंसे रहित है इसलिए उन्हें
वीतरागी कहा है I
@
जिनेद्र भगवान् सर्वज्ञ है I
केवलज्ञान के प्राप्ति से भगवान सब पदार्थोंको 
उनके त्रैकालिक पर्यायों सहित युगपत जानते है I
@
जिनेद्र भगवान हितोपदेशी है I 
सब जीवोंको इहपरलोक में कल्याणकारी मोक्षमार्ग
का उपदेश देते है इसलिए उन्हें हितोपदेशी कहा है I
जीवादी तत्त्व प्रतिपादकाय ,
सम्यक्त्व मुख्याष्टगुणाश्रयाय I
प्रशांत रुपाय दिगम्बराय ,
देवाधीदेवाय नमो जिनाय IIII
दर्शन का एक अर्थ श्रद्धान भी है I
जीवादी सात तत्व , छः द्रव्य , नौ पदार्थ आदि का 
उपदेश अरिहंत भगवान करते है I
यह उपदेश परंपरा से शास्त्रों में पाया जाता है I
उन्ही शास्त्रोंका सच्चे गुरु हमें उपदेश करते है I
व्यवहार से सच्चे देव , शास्त्र और गुरु के श्रधान को
को सम्यक दर्शन कहा है I
यह सच्चे देव शास्त्र और गुरु का श्रद्धान जीव आदि
सात तत्वोंको कारण भुत है I
इसलिए सात तत्वोंके श्रद्धान को भी सम्यक दर्शन 
कहा है I
चिदानंन्दैकरुपाय, जिनाय परमात्मने I
परमात्मप्रकाशाय , नित्यं सिधात्मने नमः IIII
यह तत्वोंका श्रद्धान से हमें जीव याने आत्मा की पहचान होती है I 
यह आत्मा चिदानंद स्वरुप है I ये हम सब जीवों में है I
निश्चय से हमारी आत्मा सिद्ध परमेष्टि समान परमात्म स्वरुप है I
मैं आत्मा हूँ I मुझमे परमात्मा बसा हुआ है I
पुद्गालादी द्रव्य पर है I मैं तो शुद्ध आत्मस्वरुप हूँ I
इस श्रद्धान को निश्चय से सम्यक दर्शन कहा है I
मेरा रोज का देव दर्शन जिनेद्र भगवान को नमस्कार है I
वैसे वह मुझमे बसे परमात्म स्वरुप आत्मा को भी है I
यही सही अर्थ में नमस्कार है , दर्शन या श्रदधान है I
यही सम्यक दर्शन है I
अरिहंत भगवान की वीतरागी प्रतिमाका दर्शन करते हुए हमें ये सोचना है की ….
हे भगवन आपका वर्तमान स्वरुप मेरा भविष्य का स्वरुप हो I 
आपने कहे उपदेश पर सम्यक श्रद्धा रखकर मैं
मोक्षमार्ग पर चलके अपना कल्याण करूँगा I
अन्यथा शरणं नास्ति, त्वमेव शरणं मम I
तस्मात् कारुण्य भावेन रक्ष रक्ष जिनेश्वर IIII
नहीं त्राता नहीं त्राता नहीं त्राता जगत्रये I
वीतरागात् परो देवो , भूतो भविष्यति IIII 
जिनेर्भक्तिजिनेर्भक्ति , जिनेर्भक्ति र्दिनेदिने I
सदामेऽस्तू सदामेऽस्तू , सदामेऽस्तू भवे भवे II१०II
जिनधर्म विनिर्मुक्तो, मा भुवं चक्रवर्त्यपी I
संचितोपीदरिद्रोऽपि जिन धर्मानुवासितः II११II
जन्मजन्मकृतं पापं , जन्मकोटिमुपार्जितम I
जन्म मृत्यु जरा रोगो हन्यते जिनदर्शनात II१२II
ऐसे अरिहंत भगवान को मैं शरण जाता हूँ ! और कोई शरण जाने योग्य नहीं !
अर्थात मैं अपने में बसे सिद्ध परमेष्टि स्वरुप परमात्मा को शरण जाता हूँ !
अरिहंत भगवान के दर्शन करनेसे मेरा जन्म , जरा और मृत्यु का नाश हो जायेगा !
अर्थात अपने आत्मा का दर्शन करनेसे और उसमे स्थित होने से मेरा जन्म , जरा , मृत्यु
का विनाश हो जायेगा !
 
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