श्री जिन सहस्त्रनाम मन्त्रावलि प्रथम अध्याय भाग २
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श्री जिन सहस्त्रनाम मन्त्रावलि प्रथम अध्याय भाग २





५१- ॐ ह्रीं अर्हं पराय  नमः- समस्त जीवों के पालक  अथवा समस्त ज्ञान आदि गुणों  की प्राप्ति होने से,

५२- ॐ ह्रीं अर्हं परतराय   नमः -संसार में सर्वश्रेष्ठ होने से,

५३- ॐ ह्रीं अर्हं सूक्ष्माय  नमः -का आकार इन्द्रियों द्वारा नही जानने से या नामकर्म के क्षय होने से सूक्ष्मत्व गुण प्रकट होने से,

५४- ॐ ह्रीं अर्हं परमेष्ठिने  नमः -परमपद में स्थित होने से,

५५- ॐ ह्रीं अर्हं सनातनाय  नमः -सदा एक समान विध्यमान रहने से,

५६- ॐ ह्रीं अर्हं स्वयंज्योतिषे नमः -स्वयं प्रकाशमान रहने से,

५७- ॐ ह्रीं अर्हं अजाय नमः -संसार में पुन:उत्पन्न नही होने से,

५८- ॐ ह्रीं अर्हं अजन्मने  नमः -जन्मरहित होने से,

५९- ॐ ह्रीं अर्हं ब्रह्मयोनये   नमः- ब्रह्म,अर्थात वेद (द्वादशांग शास्त्र) की उत्पत्ति में कारण होने से

६०- ॐ ह्रीं अर्हं अयोनिजाय  नमः- चौरासी लाख योनियों में जन्म नही लेने से ,

६१- ॐ ह्रीं अर्हं मोहरये नमः -मोहरूपी शत्रु पर विजयी होने से ,

६२-ॐ ह्रीं अर्हं विजयिने   नमः 

६३- ॐ ह्रीं अर्हं जेत्रे  नमः -सर्वदा सर्वोत्कृष्ट रूप में विध्यमान होने से,,

६४- ॐ ह्रीं अर्हं धर्मचक्रिणे  नमः -धर्म चक्र के प्रवर्तक होने से 

६५- ॐ ह्रीं अर्हं दयाध्वजाय   नमः - दया की ध्वजा होने से ,

६६- ॐ ह्रीं अर्हं प्रशांतारये  नमः -कर्म शत्रु शांत होने से 

६७- ॐ ह्रीं अर्हं अनन्तात्मने  नमः -की आत्मा ,सभी के असमर्थ होने से

६८- ॐ ह्रीं अर्हं योगीने   नमः -योग/ केवलज्ञानादि की अपूर्व प्राप्ति अथवा  ध्यान,,मोक्ष के हेतु सम्यग्दर्शन से युक्त  होने से

६९- ॐ ह्रीं अर्हं योगीश्वरार्चिताय  नमः -योगियों/मुनियों के आदिश्वरों द्वारा पूजित  होने से

७०- ॐ ह्रीं अर्हं ब्रह्मविदे  नमः -ब्रह्म अर्थात शुद्ध आत्मस्वरूप के ज्ञाता  होने से,

७१- ॐ ह्रीं अर्हं ब्रह्मतत्वज्ञाय नमः -ब्रह्मचर्य अथवा आत्मारूपी तत्वों के रहस्यों के ज्ञाता होने से  ,

७२- ॐ ह्रीं अर्हं ब्र्ह्मोद्याविदे   नमः -पूर्व ब्रह्मा द्वारा कहे हुए समस्त तत्वों / केवलज्ञानरूपी आत्म विद्या के ज्ञाता होने से

७३- ॐ ह्रीं अर्हं यतीश्वराय नमः -मोक्ष प्राप्ति में लीन मुनियों के स्वामी होने से ,

७४- ॐ ह्रीं अर्हं सिध्दाय   नमः -भावकर्मरूप  मल से रहित होने से,

७५- ॐ ह्रीं अर्हं बुद्धाय नमः -संसार के समस्त पदार्थों के ज्ञाता और  केवलज्ञानरूपी बुद्धि से युक्त होने से,

७६- ॐ ह्रीं अर्हं प्रबुद्धात्माने नमः - की आत्मा सदा शुद्ध ज्ञान से प्रकाशित रहने से,,

७७- ॐ ह्रीं अर्हं सिद्धार्थाय नमः -समस्त प्रयोजनो के  सिद्ध होने से,

७८- ॐ ह्रीं अर्हं सिद्धशासनाय  नमः -का शासन सिद्ध अर्थात प्रसिद्ध होने से ,

७९- ॐ ह्रीं अर्हं सिध्दसिद्धांतविदे  नमः -द्वादशांग सिद्धांत के ज्ञाता होनेसे ,

८०- ॐ ह्रीं अर्हं ध्येयाय  नमः - सभी लोगो द्वारा ध्यान किये जाने से ,,

८१- ॐ ह्रीं अर्हं सिद्धसाध्याय  नमः - के समस्त सिद्ध होने योग्य कार्य सिद्ध होने से ,

८२- ॐ ह्रीं अर्हं जगद्धिताय  नमः - समस्त कार्य करने वाले होने से,

८३- ॐ ह्रीं अर्हं सहिष्णवे नमः -सहनशील / क्षमा गुण के भंडार होने से ,

८४- ॐ ह्रीं अर्हं अच्युताय नमः - ज्ञानादि गुणों से कभी  च्युत  नही होने से,,

८५- ॐ ह्रीं अर्हं अनंताय  नमः -भगवान विनाश रहित होने से ,

८६- ॐ ह्रीं अर्हं प्रभविष्णवे  नमः -प्रभावशाली होने से ,

८७- ॐ ह्रीं अर्हं भवोद्भवाय  नमः -संसार में  सर्वोत्कृष्ट जन्म होने से,,

८८- ॐ ह्रीं अर्हं प्रभूष्णवे   नमः -शक्तिशाली होने से  ,

८९- ॐ ह्रीं अर्हं अजराय नमः -वृद्धावस्था रहितहोने से 

९०- ॐ ह्रीं अर्हं अयज्याय  नमः -कभी जीर्ण नही होने से,,

९१- ॐ ह्रीं अर्हं भ्राजिष्णवे  नमः -ज्ञानादि गुणों से अतिशय देदीप्यमान  होने से,,

९२- ॐ ह्रीं अर्हं धीश्वराय  नमः -केवलज्ञानरूपी बुद्धि के ईश्वर होने से  ,

९३- ॐ ह्रीं अर्हं अव्ययाय   नमः - कभी नष्ट  नही होने से,,,

९४- ॐ ह्रीं अर्हं विभावसे नमः - मोहरूपी अन्धकार को नष्ट कर सूर्य के समान होने से,

९५- ॐ ह्रीं अर्हं असम्भूष्णवे  नमः पुन: उत्पन्न नही  होने से,,

९६- ॐ ह्रीं अर्हं स्वयम्भूषणवे   नमः -स्वयं इस अवस्था को प्राप्त होने से,,

९७- ॐ ह्रीं अर्हं पुरातनाय नमः - द्रव्यार्थिक नय की अपेक्षा अनदि सिद्ध होने से

 ९८- ॐ ह्रीं अर्हं परमात्मने  नमः -आत्मा अतिशय उत्कृष्ट होने से

९९- ॐ ह्रीं अर्हं परम ज्योतिषे  नमः  -उत्कृष्ट ज्योति स्वरुप होने से,

१००- ॐ ह्रीं अर्हं त्रिजगत् परमेश्वराय नमः -तीनों लोको के ईश्वर होने से ,
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