श्री जिन सहस्त्रनाम मन्त्रावली द्वितीय अध्याय भाग १
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 श्री जिन सहस्त्रनाम मन्त्रावली द्वितीय अध्याय भाग १


१०१- ॐ ह्रीं अर्हं दिव्यभाषापतये   नमः - दिव्यध्वनि के पति होने से ,
१०२-ॐ ह्रीं अर्हं दिव्याय नमः  -अत्यंत सुंदर होने से
१०३-ॐ ह्रीं अर्हं पूतवाचे  नमः  -भगवान के वचन अतिशय पवित्र होने से ,
१०४-ॐ ह्रीं अर्हं पूतशाशन - नमः शासन पवित्र होने से,
१०५-ॐ ह्रीं अर्हं पूतात्मने  नमः  -आत्मा पवित्र होने से ,

१०६-ॐ ह्रीं अर्हं परमज्योतिषे   नमः -उत्कृष्ट ज्योति स्वरुप होने से
१०७-ॐ ह्रीं अर्हं धर्माध्यक्षाय  नमः  -धर्म के अध्यक्ष होने से,
१०८-ॐ ह्रीं अर्हं दमीश्वराय  नमः -इन्द्रियों के विजेताओं में श्रेष्ठ होने से,
१०९-ॐ ह्रीं अर्हं श्रीपतये नमः  -मोक्षरूपी लक्ष्मी के अधिपति होने से,
११०-ॐ ह्रीं अर्हं भगवते  नमः  -अष्टप्रातिहार्य रूप उत्तम ऐश्वर्य  युक्त होने से,
१११-ॐ ह्रीं अर्हं अर्हते  नमः  -सभी के द्वारा पूजनीय होने से,
११२-ॐ ह्रीं अर्हं अरजसे  नमः  -कर्मरूपी मल रहित होने से
११३-ॐ ह्रीं अर्हं विरजसे  नमः  -दर्शनावरण एवं ज्ञानावरण से रहित और भव्य जीवों के कर्ममल को दूर करने से 
११४-ॐ ह्रीं अर्हं शुचये  नमः  -अतिशय पवित्र होने से
११५-ॐ ह्रीं अर्हं तीर्थकृते  नमः  -धर्मरूप तीर्थ के प्रवर्तक होने से,
११६-ॐ ह्रीं अर्हं केवलिने  नमः  -केवलज्ञान युक्त होने से,
११७-ॐ ह्रीं अर्हं ईशानाय  नमः   -अनंत सामर्थ्य युक्त होने से,
११८-ॐ ह्रीं अर्हं पूजार्हाय  नमः  -पूजनीय होने से,
११९-ॐ ह्रीं अर्हं स्नातकाय  नमः  -घातिया कर्मों के नष्ट होने से अथवा पूर्ण ज्ञान प्राप्त होने से
१२०-ॐ ह्रीं अर्हं अमलाय नमः  -शरीर मल एवं आत्मा रागद्वेषादि दोषों से रहित होने से
१२१ॐ ह्रीं अर्हं नंतदीप्तये - नमःकेवलज्ञान रूपी अनंत दीप्ति और शरीर की अपरिमित प्रभा के धारक होने से,
१२२-ॐ ह्रीं अर्हं ज्ञानात्मने  नमः  -आत्मा ज्ञानस्वरूप होने से,
१२३-ॐ ह्रीं अर्हं स्वयंबुद्धाय  नमः  -गुरु की सहायता के बिना समस्त पदार्थों का ज्ञान प्राप्त करने से अथवा  स्वयं  विरक्त होकर मोक्ष मार्ग में प्रवृत होने से
१२४-ॐ ह्रीं अर्हं प्रजापतये  नमः  -समस्त जनसमूह के रक्षक होने से' ,
१२५-ॐ ह्रीं अर्हं मुक्ताय  नमः  -कर्म बन्धन रहित होने से ,
१२६-ॐ ह्रीं अर्हं शक्ताय  नमः   -अनंत बल युक्त होने से,
१२७-ॐ ह्रीं अर्हं निराबाधाय  नमः  -बाधा-उपसर्ग से रहित होने से,
१२८-ॐ ह्रीं अर्हं निष्कलाय   नमः   -माया रहित होने से,
१२९-ॐ ह्रीं अर्हं भुवनेश्वराय  नमः   -तीनों लोक के ईश्वर होने से ,
१३०-ॐ ह्रीं अर्हं निरंजनाय   नमः  -कर्मरूपी अंजन से रहित होने से',
१३१-ॐ ह्रीं अर्हं जगज्ज्योतिषे  नमः   -जगत को प्रकाशित करने वाले होने से,
१३२-ॐ ह्रीं अर्हं निरोक्तोक्तये  नमः  - के वचन सार्थक और पूर्वापर विरोध से रहित होने से,
१३३-ॐ ह्रीं अर्हं निरामयाय   नमः   -रोगरहित होने से ,
१३४-ॐ ह्रीं अर्हं अचलस्थितये  नमः  -की स्थिति अचल होने से,
१३५-ॐ ह्रीं अर्हं अक्षोभ्याय  नमः  -क्षोभ को प्राप्त नही होने से,
१३६-ॐ ह्रीं अर्हं कूटस्थाय  नमः   -नित्य होने से',
१३७-ॐ ह्रीं अर्हं स्थाणवे  नमः  - गमनागमन रहित होने से,
१३८-ॐ ह्रीं अर्हं अक्षयाय  नमः  -क्षयरहित होने से,
१३९-ॐ ह्रीं अर्हं अग्रण्यै  नमः  -त्रिलोक में सर्वश्रेष्ठ होने से,
१४०-ॐ ह्रीं अर्हं ग्रामण्ये  नमः  -भव्य जीवों के  मोक्ष दाता होने से,
१४१-ॐ ह्रीं अर्हं नेत्रे  नमः  -जीवों के मार्ग के लिए  हितोपदेशक होने से 
१४२-ॐ ह्रीं अर्हं प्रणेत्रे  नमः  -द्वादशांग रूप शास्त्रों के रचियता होने से ,
१४३-ॐ ह्रीं अर्हं न्यायशास्त्रकृते  नमः  -न्यायशास्त्र के उपदेशक होने से,
१४४-ॐ ह्रीं अर्हं शास्त्रे  नमः  -हितोपदेशी होने से,
१४५-ॐ ह्रीं अर्हं धर्मपतये  नमः  -उत्तम क्षमादि धर्मों के स्वामी होने से,
१४६-ॐ ह्रीं अर्हं धर्म्याय  नमः  -धर्म युक्त होने से,
१४७-ॐ ह्रीं अर्हं धर्मात्माने  नमः  -आत्मा धर्मरूप अथवा धर्म से उपलक्षित होने से,
१४८-ॐ ह्रीं अर्हं धर्मतीर्थकृते  नमः  -धर्मतीर्थ के प्रवर्तक होने से,
१४९-ॐ ह्रीं अर्हं वृषध्वजाय  नमः    -(ऋषभदेव जी)  की ध्वजा में वृष (बैल)का चिन्ह अथवा /धर्म ही ध्वजा होने से,
१५०-ॐ ह्रीं अर्हं वृषाधीशाय  नमः  -वृष /धर्म के पति होने से,,
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