श्री जिन सहस्त्रनाम मन्त्रावली पंचम अध्याय भाग १
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श्री जिन सहस्त्रनाम मन्त्रावली पंचम अध्याय भाग १


४०१-ॐ ह्रीं अर्हं श्रीवृक्षलक्षणाय नमः   -श्री वृक्ष चिन्ह से  चिन्हित  होने से,

४०२-ॐ ह्रीं अर्हं सूक्ष्मलक्षणाय  नमः   -सूक्ष्मरूप होने से,

४०३-ॐ ह्रीं अर्हं लक्षण्याय  नमः   -लक्षणों सहित होने से ,

४०४-ॐ ह्रीं अर्हं शुभलक्षणाय  नमः    -शरीर में अनेक (१००८) शुभ लक्षण चिन्हित  होने से,

४०५-ॐ ह्रीं अर्हं निरीक्षाय  नमः   -समस्त पदार्थों का निरीक्षण करने वाले होने से /नेत्रेंद्रियों द्वारा दर्शन क्रिया नही करने से ,

४०६-ॐ ह्रीं अर्हं पुण्डरीकाक्षाय नमः   नेत्र पुण्डरीक कमल  समान सुंदर  होने से

४०७-ॐ ह्रीं अर्हं पुष्कलाय  नमः   -आत्मगुणों  परिपुष्ट होने से,

४०८-ॐ ह्रीं अर्हं पुष्करेक्षणाय नमः   -कमलदल के समान लम्बे नेत्रों के होने से,

४०९-ॐ ह्रीं अर्हं सिद्धिदाय  नमः    -सिद्धि देने वाले होने से

४१०-ॐ ह्रीं अर्हं सिद्धसंकल्पाय नमः   - समस्त  विकल्प सिद्ध हो चुकने से 

४११-ॐ ह्रीं अर्हं सिद्धात्मने    नमः   -की आत्मा सिद्धावस्था प्राप्त करने से,

४१२-ॐ ह्रीं अर्हं सिद्धसाधनाय  नमः    - रत्नत्रय रूप मोक्ष साधन प्राप्त होने से,

४१३-ॐ ह्रीं अर्हं बुद्धबोध्याय  नमः    -को सब पदार्थों का ज्ञान   होने से,

४१४-ॐ ह्रीं अर्हं महाबोधय नमः   -की रत्नत्रय रुपी विभूति अत्यंत प्रशंसनीय  होने से,

४१५-ॐ ह्रीं अर्हं वर्धमानाय नमः   -के गुण उत्तरोत्तर वृद्धि गत होने से,

४१६-ॐ ह्रीं अर्हं महर्द्धिकाय  नमः   -महा ऋद्धि धारक होने से,

४१७-ॐ ह्रीं अर्हं वेदांगाय  नमः   -अनुयोग रूपी वेदो के अंग अर्थात कारण होने से,

४१८-ॐ ह्रीं अर्हं वेदविदे नमः   -वेदो के ज्ञाता होने से ,,

४१९-ॐ ह्रीं अर्हं वैद्याय नमः   -ऋषियों द्वारा जाने होने से,

४२०-ॐ ह्रीं अर्हं जातरूपाय नमः   -दिगंबर रूप होने से,

४२१-ॐ ह्रीं अर्हं विदांवराय  नमः    -जानने वालो में श्रेष्ठ होने से,

४२२-ॐ ह्रीं अर्हं वेदवेद्याय नमः   -आगम/केवलज्ञान के  द्वाराजानने योग्य होने से]

४२३-ॐ ह्रीं अर्हं स्वसंवेद्याय नमः   -अनुभवगम्य होने से ,

४२४-ॐ ह्रीं अर्हं विवेदाय नमः   -तीनो(पुरुष,स्त्री,नपुंसक ) वेदों से रहित होने से ',

४२५-ॐ ह्रीं अर्हं वदतांवराय नमः   - वक्ताओं में श्रेष्ठ होने से ,

४२६-ॐ ह्रीं अर्हं अनादिनिधनाय नमः  -अनादि और अंत रहित होने से,

४२७-ॐ ह्रीं अर्हं व्यक्ताय नमः  -ज्ञान के द्वारा अत्यंत स्पष्ट होनेसे ,

४२८-ॐ ह्रीं अर्हं व्यक्तवाचे  नमः  -वचन  अतिशय स्पष्ट होने से,

४२९-ॐ ह्रीं अर्हं व्यक्तशासनाय  नमः   -का शासन अत्यंत स्पष्ट/प्रकट  होने से

४३०-ॐ ह्रीं अर्हं युगादिकृते  नमः   -कर्मभूमि रूप युग   के आदि (आदिनाथ भगवान ) व्यवस्थापक होने से ,

४३१-ॐ ह्रीं अर्हं युगाधाराय नमः   -युग  की समस्त   व्यवस्था करने वाले होने से

४३२-ॐ ह्रीं अर्हं युगादये   नमः   -आदिनाथ द्वारा कर्मभूमि युग का प्रारम्भ   होने से,

४३३-ॐ ह्रीं अर्हं जगदादिजाय   नमः   -जगत के प्रारम्भ में उत्पन्न  होने से,

४३४-ॐ ह्रीं अर्हं अतीन्द्राय नमः  -ने अपने प्रभाव/ऐश्वर्य से इन्द्रों को अतिक्रांत कर दिया है अत:

४३५-ॐ ह्रीं अर्हं अतीन्द्रियाय नमः   -इन्द्रिय गोचर नही होने से ,

४३६-ॐ ह्रीं अर्हं धीन्द्राय  नमः   - बुद्धि के स्वामी होने से,,

४३७-ॐ ह्रीं अर्हं महेंद्राय नमः   -परम ऐश्वर्य को अनुभव होने  से,

४३८-ॐ ह्रीं अर्हं अतीन्द्रियार्थदृशे नमः    -अतीन्द्रिय सूक्ष्म,अंतरित,दूरार्थ ) पदार्थों  देखने से,

४३९-ॐ ह्रीं अर्हं अनिन्द्रियाय नमः   -इन्द्रियों से रहित होने से 

४४०-ॐ ह्रीं अर्हं अहमिन्द्राच्र्याय नमः    -अहमिन्द्र द्वारा पूजित होने से,

४४१-ॐ ह्रीं अर्हं महेंद्रमहिताय नमः   -बड़े बड़े इन्द्रों द्वारा पूजित होने से ,

४४२-ॐ ह्रीं अर्हं महते  नमः   -स्वयं विशालतम   होने से,

४४३- ॐ ह्रीं अर्हं उद्भवाय नमः   -संसार में  उत्कृष्टतम  होने से 

४४४- ॐ ह्रीं अर्हं कारणाय नमः   -मोक्ष के कारण   होने से,

४४५- ॐ ह्रीं अर्हं कर्त्रे  नमः   - शुद्ध भावों करने से ,

४४६- ॐ ह्रीं अर्हं पारगाय नमः   -संसार रूपी सागर   को पार करने वाले होने से,

४४७- ॐ ह्रीं अर्हं भवतारकाय नमः   -भव्य जीवों को  संसार सागर से तारने वाले होने से ,',

४४८- ॐ ह्रीं अर्हं अगाह्याय  नमः    -किसी के द्वारा अवगाहन करने योग्य नही होने से ,/के गुणों को कोई नही समझ सकने से,

४४९-ॐ ह्रीं अर्हं गहनाय  नमः    -का स्वरुप   अतिशय गंभीर या कठिन  होने से ,

४५०- ॐ ह्रीं अर्हं गुह्माय नमः   -गुप्त रूप होने से,
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