श्री जिन सहस्त्रनाम मन्त्रावली अष्टम अध्याय भाग १
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श्री जिन सहस्त्रनाम मन्त्रावली अष्टम अध्याय भाग १



७०१-ह्रीं अर्हं वृहद्बृहस्पतये  नमः   -इन्द्रों के गुरु होने से,



७०२-ॐ ह्रीं अर्हं वाग्मिने  नमः   -प्रशस्त वचनों के धारक होने से,

७०३-ॐ ह्रीं अर्हं वाचस्पतये   नमः   -वचनों के स्वामी होने से।,

७०४-ॐ ह्रीं अर्हं उदारधिये  नमः   -उत्कृष्ट बुद्धि धारक होने से,

७०५-ॐ ह्रीं अर्हं मनीषिणे  नमः   -शक्तियों युक्त होने से ,

७०६-ॐ ह्रीं अर्हं धिषणाय   नमः   -चतुर्यपूर्ण बुद्धि युक्त होने से,

७०७-ॐ ह्रीं अर्हं धीमते  नमः   -धारणपुट बुद्धि युक्त होने से,

७०८-ॐ ह्रीं अर्हं शेमुषीशाय  नमः   -बुद्धि के स्वामी होने से,

७०९-ॐ ह्रीं अर्हं गिराम्पतये  नमः  -समस्त वचनों के स्वामी होने से ,

७१०-ॐ ह्रीं अर्हं नैकरूपाय  नमः   -अनेकरूप होने से,

७११-ॐ ह्रीं अर्हं नयोत्तुंगाय   नमः   -नयो द्वारा उत्कृष्टावस्था  प्राप्त करने से,

७१२-ॐ ह्रीं अर्हं नैकात्मने  नमः   -अनेक गुणों के धारक ,

७१३-ॐ ह्रीं अर्हं नैकधर्मकृतये  नमः   -वस्तु के अनेक धर्मों के उपदेशक,

७१४-ॐ ह्रीं अर्हं अविज्ञेयाय  नमः    -साधारण पुरुषों द्वारा जानने के अयोग्य होने से,

७१५-ॐ ह्रीं अर्हं अप्रतकर्यात्मने   नमः   - तर्क-वितर्क रहित स्वरुप युक्त होने से ,

७१६-ॐ ह्रीं अर्हं कृतज्ञाय   नमः  -समस्त कृतज्ञ जानने से,

७१७-ॐ ह्रीं अर्हं कृतलक्षणाय   नमः   - समस्त पदार्थों का लक्षणस्वरूप बताने से,

७१८-ॐ ह्रीं अर्हं ज्ञानगर्भाय  नमः   -अंतरंग में ज्ञान होने से,

७१९-ॐ ह्रीं अर्हं दयागर्भाय  नमः  - दयालु हृदय होने से,
७२०-ॐ ह्रीं अर्हं रत्नगर्भाय  नमः  -रत्नत्रय युक्त होने से अथवा गर्भकल्याणक में रत्नवृष्टि होने से,

७२१-ॐ ह्रीं अर्हं प्रभास्वराय  नमः   -देदीप्यमान होने से,

७२२-ॐ ह्रीं अर्हं पद्मगर्भाय  नमः   -कमलाकार गर्भाशय में स्थित होने से,

७२३-ॐ ह्रीं अर्हं जगद्गर्भाय  नमः   -ज्ञान में के प्रतिबिंबित होने से,

७२४-ॐ ह्रीं अर्हं हेमगर्भाय   नमः   -गर्भवास के समय पृथिवी के स्वर्णमय अथवा सुवर्णमय वृष्टि होने से,

७२५-ॐ ह्रीं अर्हं सुदर्शनाय  नमः   -सुंदर दर्शन होने से,

७२६-ॐ ह्रीं अर्हं लक्ष्मीवते  नमः   -अंतरंग एवं बहिरंग लक्ष्मी से  युक्त होने से,

७२७- ॐ ह्रीं अर्हं त्रिदशाध्यक्षाय  नमः -देवों के स्वामी होने से,

७२८-ॐ ह्रीं अर्हं दृढीयसे  नमः   -अत्यंत दृढ होने से,

७२९-ॐ ह्रीं अर्हं इनाय  नमः   -सबके स्वामी होने से

७३०-ॐ ह्रीं अर्हं ईशित्रे  नमः   - सामर्थ्यशाली होने से,

७३१-ॐ ह्रीं अर्हं मनोहराय  नमः   -भव्यजीवों का मन हरण करने से,

७३२-ॐ ह्रीं अर्हं मनोज्ञांगाय  नमः - सुंदर अंगों के धारक होने से

७३३-ॐ ह्रीं अर्हं धीराय  नमः   -धैर्यवान होने से,

७३४-ॐ ह्रीं अर्हं गम्भीरशासनाय    नमः   -शासन की गंभीरता से,

७३५-ॐ ह्रीं अर्हं धर्मयूपाय  नमः   -धर्म  स्तम्भरूप होने से,

७३६-ॐ ह्रीं अर्हं दयायागाय   नमः -द्यारूप यज्ञ  के करने वाले होने से,

७३७-ॐ ह्रीं अर्हं धर्मनेमये  नमः  -धर्मरूपी रथ की चक्रधारा होने से,

७३८-ॐ ह्रीं अर्हं मुनीश्वराय  नमः - मुनियों के स्वामी होने से,

७३९-ॐ ह्रीं अर्हं धर्मचक्रायुधाय  नमः   -धर्मचक्ररूपी शस्त्र के धारक होने से,

७४०-ॐ ह्रीं अर्हं देवाय  नमः -आत्मगुणों में क्रीड़ा करने से,

७४१-ॐ ह्रीं अर्हं कर्मघ्ने  नमः  -कर्मों के क्षय करने से,

७४२-ॐ ह्रीं अर्हं धर्मघोषणाय नमः   - धर्म उपदेशक होने से ,

७४३-ॐ ह्रीं अर्हं अमोघवाचे नमः   -के  वचन व्यर्थ नही जाने से,

७४४-ॐ ह्रीं अर्हं अमोघाज्ञाय   नमः   - की आज्ञा निष्फल नही होने से,

७४५-ॐ ह्रीं अर्हं निर्मलाय  नमः   - मलरहित होने से,

७४६- ॐ ह्रीं अर्हं अमोघशासनाय   नमः  -का शासन सदा सफल होने से,

७४७-ॐ ह्रीं अर्हं सुरूपाय  नमः   -सुंदर होने  से,

७४८- ॐ ह्रीं अर्हं सुभगाय   नमः   -ऐश्वर्य युक्त होने से,

७४९- ॐ ह्रीं अर्हं त्यागिने  नमः   -समस्त पर का त्याग करने से,

७५०- ॐ ह्रीं अर्हं समयज्ञाय  नमः   -सिद्धांत,समय अथवा आचार्य के ज्ञाता होने से,
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