जैन दर्शन अनुसार 12 चक्रवर्ती सम्राट
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जैन दर्शन आनुसार अनादि काल से भारत भूमि पर प्रत्येक अवसर्पिणी उत्सर्पिणी काल में 12 चक्रवर्ती सम्राट होतें है जो प्रभाव शाली व शक्ति शाली होतें है, इस युग के अपार वैभव के धनी चक्रवर्तियों का संक्षिप्त परिचय-
चक्रवर्ती पूरे भरत क्षेत्र के 6खण्डों पर बिना किसी परेशानी के राज करते हैं
ये नवनिधि, चोदह रत्न, 96000स्त्रियों के स्वामी व 32000मुकुटबद्ध राजाओं के अधिपति होतें है,
दिव्य पुर, रत्न, निधि, चमू, भाजन, भोजन, शय्या, आसन, वाहन, नाट्य, ये दस चक्रवर्ती के दशांग भोग होतें है,
काल, महाकाल, माणवका, पिग्डल, नैसर्प, पद्म, पाण्डु, शंख, नानारत्न, ये चक्रवर्ती की नव निधियां है प्रत्येक निधि के 1-1हजार देव रक्षक होतें है,
इन नव निधियों से चक्री को पुष्प, माला, बर्तन, आयुध, अलंकार, गृह, वस्त्र, धान्य, बाजे, नानारत्न, की प्राप्ति होती है
इनके 840000 हाथी, 840000 रथ, 18000000घोड़े होते हैं,
चक्री के 14रत्नों में सात चेतन रत्न- अश्व, हस्ति, गृहपति, रथपति, सेनापति, स्त्री, पुरोहित, व
अचेतन रत्न- छत्र, असि, दण्ड, चक्र, कांकिणी, चूडामणि, चर्म, होते हैं जिनके 1-1हजार देव रक्षक होतें है,
दण्ड रत्न से चक्री विशाल गुफा का द्वार खोलता है,
चक्र रत्न से शत्रुओं को अपने अधीन करता है,
कांकिणी रत्न से वृषभाचल पर्वत पर अपना नाम लिखता है,
चूडामणि रत्न से गुफा मे तेज प्रकाश करता है,
चर्म रत्न से बर्षा होने पर अपनी विशाल 14अक्षौहिणी सेना की रक्षा करता है
चक्री, मरकर नर्क, स्वर्ग, या मोक्ष प्राप्त करते हैं,



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