दर्शन—पाठ(हिंदी अनुवाद )
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दर्शन—पाठ(हिंदी अनुवाद )
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देवाधिदेव जिनेन्द्र देव का दर्शन पापों का नाश करने वाला है स्वर्ग जाने के लिए सीढ़ी के समान तथा मोक्ष जाने का साधन है।जिनेन्द्र भगवान के दर्शन करने से तथा साधुओं की वन्दना करने से पाप बहुत समय तक नहीं ठहरते। जैसे—छिद्र सहित हाथ में पानी नहीं ठहरता।
पद्मराग मणि के समान शोभनीक श्री वीतराग भगवान् के दर्शन करने से अनेक जन्मों के किये हुए पाप नष्ट हो जाते हैं।
सूर्य के समान तेजस्वी जिनेन्द्र देव के दर्शन करने से, संसार रूपी अंधकार नष्ट हो जाता है,चित्तरूपी कमल खिलता है और सर्वपदार्थ प्रकाश में आते हैं अर्थात् जाने जाते हैं।
चन्द्रमा के समान श्री जिनेन्द्र देव का दर्शन करने से सच्चेधर्मरूपी अमृत की वर्षा होती है, संसार के दु:खों का नाश होता है और सुख रूपी समुद्र की वृद्धि होती है।
ऐसे देवाधिदेव जिनेन्द्रदेव को नमस्कार हो, जो जीवादि सप्त तत्त्वों के बताने वाले, सम्यक्तव आदि आठ गुणों के समुद्र, शांतरूप तथा दिगम्बर हैं।
जो ज्ञानानंद एक स्वरूप वाले हैं, अष्टकर्मों को जीतने वाले हैं, परमात्म स्वरूप हैं, ऐसे सिद्धात्मा को अपने परमात्म स्वरूप के प्रकाशित होने के लिए नित्य नमस्कार हो।
आपकी शरण के अलावा संसार में मेरे लिए कोई शरण नहीं है, आप ही शरण हैं, इसलिए करुणाभाव करके, हे जिनेन्द्रदेव! हमारी रक्षा करो, रक्षा करो।
तीनों लोक में कोई अपना रक्षक नहीं है, रक्षक नहीं है, रक्षक नहीं है (यदि कोई रक्षक हैं तो वे वीतराग देव आप ही हैं) क्योंकि आपसे बड़ा देव न तो कोई हुआ है और न ही भविष्य में कभी होगा।
मैं यह आकांक्षा करता हूँ कि जिनेन्द्र भगवान के प्रति मेरी भक्ति प्रतिदिन और प्रत्येक भव में बनी रहे एवं जिनेन्द्र भगवान मेरे लिए भव—भव में मिलते रहें।
जिनधर्मरहित चक्रवर्ती होना भी अच्छा नहीं है किन्तु जिनधर्म का पालन करते हुए यदि दरिद्री एवं दास बनना पड़े तो वह स्वीकार है।
जिनेन्द्र भगवान के दर्शन से करोड़ों जन्मों के एकत्रित किये हुये पाप तथा जन्म, बुढ़ापा, मृत्युरूपी रोग अवश्य ही नष्ट हो जाते हैं।
हे देवाधिदेव ! आपके कल्याणकारी चरण कमलों के दर्शन से मेरे दोनों नेत्र आज सफल हुए। हे तीनों लोक के तिलक स्वरूप आपके प्रताप से मेरा संसार रूपी समुद्र, हाथ में लिये गये चुल्लु भर पानी के समान प्रतीत होता है अर्थात् आपके प्रताप से ही मैं सहज ही संसार समुद्र से पार हो जाऊँगा।
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