Bhaktambar stotra 31 to 36 with meaning and riddhi mantra
#1

छत्र-त्रयं तव विभाति शशांङ्क - कान्त मुच्चै: स्थितं स्थगित भानु-कर-प्रतापम् । 
मुक्ता- फल- प्रकर- जाल -  विवृद्ध-शोभं, प्रख्यापयत्-त्रिजगत: परमेश्वरत्वम्॥

मुक्ता की लड़ियों से शोभित तीन छत्र मनहर। 
गुरू, लघु, लघुत्तम क्रम से हैं ये सूर्य किरण तपहर ।। 
तीन जगत के नाथ शीश पर तीन छत्र रहते । 
तीनों जग के स्वामी हैं ये यही प्रगट करते ।। 
वीतराग प्रभुवर की मुझ पर रहे छत्र छाया। 
कर्म तापहारी जिनवर सी मिले ज्ञान काया ।। 
मानतुंग मुनिवर में प्रभु की भक्ति समाई है। 
भक्तामर में ऋषभदेव की महिमा गाई है।। (31)

ॐ ह्रींअर्हम् मनोबल ऋद्धये मनोबल ऋद्धि प्राप्तेभ्यो नमो दीप प्रज्वलनम् करोमि । (31)


गम्भीर- तार- रव- पूरित- दिग्विभाग, स्त्रैलोक्य - लोक - शुभ-सङ्गम -भूति - दक्षः । 
-राज-जय-घोषण: - घोषक: सन्, खे दुन्दुभि-र्ध्वनति ते यशसः प्रवादी ॥

दशों दिशा में उच्च और गम्भीर शब्द करता । 
प्रभु सत्संग की महिमा दुन्दुभि सबको बतलाता ।। 
जयवन्तो ! तीर्थकर स्वामी ! यूँ जयघोष करें। 
दुन्दुभि वाद्य सु-यश जिनवर का नभ में प्रकट करें ।। 
स्वानुभूति का वाद्य बजाकर प्रगटाऊँ परमात्म। 
श्वांस-श्वांस में प्रभु भक्ति का गूँजे अनहद नाद ।। 
मानतुंग मुनिवर में प्रभु की भक्ति समाई है। 
भक्तामर में ऋषभदेव की महिमा गाई है ।। ( 32 )

ॐ ह्रीं अर्हम् वचनबल ऋद्धये वचनबल ऋद्धि प्राप्तेभ्यो नमो दीप प्रज्वलनम् करोमि । (32)


मन्दार- सुन्दर नमेरु- सुपारिजात सन्तानकादि- कुसुमोत्कर-वृष्टि-रुद्वा । 
गन्धोद-बिन्दु- शुभ-मन्द-मरुत्प्रपाता, दिव्या दिवः पतति ते वचसां ततिर्वा ॥

संतानक सुन्दर नमेरू और पारिजात मन्दार । 
तरह-तरह के सुमन बरसते नभ से दिव्य अपार ।। 
सुगन्ध जल औ मन्द पवन संग पुष्प लगे ऐसे । 
तव वचनों की कतार नभ से बरसी हो जैसे ।। 
ऊर्ध्व मुखी सुमनों की वर्षा मानों यह कहती। 
प्रभु चरणों में वन्दन से बंधन बाधा मिटती ।। 
मानतुंग मुनिवर में प्रभु की भक्ति समाई है। 
भक्तामर में ऋषभदेव की महिमा गाई है ।। (33)

ॐ ह्रीं अर्हम् कायबल ऋद्धये कायबल ऋद्धि प्राप्तेभ्यो नमो दीप प्रज्वलनम् करोमि । (33)


शुम्भत्-प्रभा- वलय-भूरि-विभा-विभोस्ते, लोक-त्रये -द्युतिमतां द्युति-माक्षिपन्ती। 
प्रोद्यद्- दिवाकर - निरन्तर-भूरि - संख्या, दीप्त्या जयत्यपि निशामपि सोमसौम्याम्॥

प्रभु का आभा मण्डल चारों ओर चमकता है। 

त्रिभुवन के द्युतिमय पदार्थ को लज्जित करता है ।। 
कोटि सूर्य युगपत् उगने पर जो दीप्ति होती। 
प्रभु के भामण्डल में उससे अधिक कान्ति होती ।। 
ज्योतिर्मय होकर भी इसमें ताप नहीं होता। 
शरद पूर्णिमा के चन्दा जैसी शीतलता देता ।। 
मानतुंग मुनिवर में प्रभु की भक्ति समाई है। 
भक्तामर में ऋषभदेव की महिमा गाई है ।। (34) 

ॐ ह्रीं अर्हम् आमर्षौषधि ऋद्धये आमर्षोषधि ऋद्धि प्राप्तेभ्यो नमो दीप प्रज्वलनम् करोमि। (34)

स्वर्गापवर्ग- गम- मार्ग- विमार्गणेष्ट: सद्धर्म- तत्त्व-कथनैक-पटुस् त्रिलोक्या: । 
दिव्य-ध्वनि-र्भवति ते विशदार्थ-सर्व भाषास्वभाव परिणाम-गुणैः प्रयोज्य: ॥

स्वर्ग मोक्ष का पथ बतलाती जिनवर की वाणी । 
सम्यक् धर्म कथन में पटु है वाणी कल्याणी ।। 
स्पष्ट अर्थ युत सब भाषा में परिणत गुणवाली । 
तीन लोक के सब जीवों का दुःख हरने वाली ।। 
दिव्य ध्वनि को नमन करूँ प्रभु वचनों को ध्याऊँ । 
प्रभु वचनामृत पीकर अजर-अमर पद पा जाऊँ ।। 
मानतुंग मुनिवर में प्रभु की भक्ति समाई है। 
भक्तामर में ऋषभदेव की महिमा गाई है।। ( 35 )

ॐ ह्रीं अर्हम् क्ष्वैलौषधि ऋद्धये क्ष्वैलौषधि ऋद्धि प्राप्तेभ्यो नमो दीप प्रज्वलनम् करोमि । (35)


उन्निद्र- हेम- नव- पङ्कंज- पुंज- कान्ती, पर्युल्-लसन्-नख-मयूख व-शिखाभिरामौ । 
पादौ पदानि तव यत्र जिनेन्द्र ! धत्तः, पद्मानि तत्र विबुधाः परिकल्पयन्ति ॥

विकसित नूतन स्वर्णकमल सम प्रभु के युगल चरण । 
झिलमिल झिलमिल नख कान्ति ज्यों नभ में चन्द्र किरण । 
विहार में प्रभुवर के ऐसे चरण जहां पड़ते । 
स्वर्णमयी कमलों की रचना देव वहां करते ।।
श्रद्धा कमल रचाकर भविजन जोड़े हाथ खड़े । 
हृदय धरा पर कब प्रभुवर के पावन चरण पड़े।। 
मानतुंग मुनिवर में प्रभु की भक्ति समाई है। 
भक्तामर में ऋषभदेव की महिमा गाई है ।। ( 36 )

ॐ ह्रीं अर्हम् जल्लौषधि ऋद्धये जल्लौषधि ऋद्धि प्राप्तेभ्यो नमो दीप प्रज्वलनम् करोमि । (36)

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भक्तामर स्त्रोत 48 दीपकों के साथ रिद्धि-सिद्धि मंत्रों से
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