गुणस्थान
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१४ गुणस्थान 

१. मिथ्यात्व गुणस्थान :-
-मिथ्या अर्थात विपरीत श्रद्धान से युक्त गुणस्थान को मिथ्यात्व गुणस्थान कहते है॑ ।

२. सासादन गुणस्थान :-
-उपशम सम्यक्त्व से परिपतित होने और मिथ्यात्व को प्राप्त होने से पूर्व(बीच)  की स्थिति सासादन गुणस्थान कहते है॑ ।

३. मिश्र  गुणस्थान :-
—जिस गुणस्थान में श्रद्धान रूप और अश्रद्धानरूप अर्थात् मिश्र परिणाम युगपत् पाए जाएं उसे मिश्र गुणस्थान कहते हैं। इस गुणस्थान में मरण, आयुबंध नहीं होता। इस गुणस्थान वाला जीव संयम को भी प्राप्त नहीं होता।

 ४  -  अविरत सम्यग्दृष्टि :-
—संयम रहित सम्यग्दृष्टि जीव असंयत अथवा अविरत सम्यग्दृष्टि कहलाता है। दर्शनमोह का उपशम होने से सम्यग्दृष्टि है किन्तु चारित्रमोह के उदय से चारित्र ग्रहण नहीं कर पा रहा है, अत: असंयत है। इसलिए अविरत सम्यग्दृष्टि गुणस्थान का नाम सार्थक है।

   ५ -  देशविरत या संयमासंयम गुणस्थान :-
—इस गुणस्थान में पाँचों पापों का स्थूल रूप से त्याग हो गया इसलिये देशविरत कहलाता है। अथवा त्रस जीवों के घात का त्यागी होने से संयम है किन्तु स्थावर जीवों के घात का त्याग न होने से असंयमी है। अत: संयमासंयम नाम सार्थक है।
  
  ६-  प्रमत्तसंयत गुणस्थान :-
—जहाँ पर पाँचों पापों के पूर्ण अभाव होने से सकल संयम प्रकट हो गया है किन्तु संज्वलन कषाय का उदय होने से प्रमाद है। अत: प्रमत्तसंयत गुणस्थान सार्थक है।
 
   ७-  अप्रमत्तसंयत गुणस्थान :-
—जहाँ संज्वलन कषाय का मंद उदय हो जाने से प्रमाद का भी अभाव हो गया, उसे अप्रमत्तसंयत गुणस्थान कहते हैं। इस गुणस्थान के दो भेद हैं। १. स्वस्थानअप्रमत्त—जो छटवें—सातवें गुणस्थान में विचरण करते रहते हैं। २. सातिशय अप्रमत्त—जो प्रमाद पर पूर्ण विजय प्राप्त करके श्रेणी चढ़ने के सम्मुख होते हैं।
 
   ८- अपूर्वकरण गुणस्थान :-
—जिस गुणस्थान में आत्मा के अपूर्व—अपूर्व परिणाम उत्पन्न होते हैं, वह अपूर्वकरण गुणस्थान कहलाता है।

    ९-अनिवृत्तिकरण गुणस्थान :-
—एक समय में रहने वाले अनेक जीवों के परिणाम परस्पर में समान रहते हैं, उनमें भेद नहीं पाया जाता, उसे अनिवृत्तिकरण गुणस्थान कहते हैं। इस गुणस्थान में मोहनीयकर्म का स्थूल रूप से क्षय अथवा उपशम हो जाता है।

    १०-सूक्ष्मसांपराय गुणस्थान :-
—जिस गुणस्थान में संज्वलन लोभ कषाय का अत्यन्त सूक्ष्म सद्भाव रहता है, उसे सूक्ष्मसांपराय गुणस्थान कहते हैं।

     ११- उपशांत मोह गुणस्थान :-
—जिस गुणस्थान से समस्त मोहनीय कर्म का उपशम होता है, उसे उपशांत मोह गुणस्थान कहते हैं।

    १२.  क्षीणमोह गुणस्थान :-
—जिस गुणस्थान में मोहनीयकर्म का पूर्ण क्षय कर दिया जाता है, उसे क्षीणमोह गुणस्थान कहते हैं।

    १३- सयोग केवली :-
—चार घातिया कर्मों के क्षय से होने वाले अनंत चतुष्टय से युक्त अरिहंत परमात्मा केवली कहलाते हैं। इनके जब तक योग रहता है तब तक सयोग केवली कहलाते हैं।
   
     १४ -अयोग केवली :-
—योगातीत केवली को अयोगकेवली गुणस्थानवर्ती कहा जाता है। इसका समय ५ ह्रस्वस्वर (अ, इ, उ, ऋ, ऌ) के उच्चारण बराबर है।

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