प्रवचनसारः गाथा - अरिहंत, सिद्ध भगवान के गुण
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श्रीमत्कुन्दकुन्दाचार्यविरचितः प्रवचनसारः
आचार्य कुन्दकुन्द विरचित
प्रवचनसार


गाथा -71 (आचार्य जयसेन की टीका अनुसार )
तेजो दिट्ठी णाणं इड्ढी सोक्खं तहेव ईसरियं /
तिहुवणपहाणदइयं माहप्पं जस्स सो अरिहो //  //

प्राधान्य है त्रैलोक्य में ऐश्वर्य ऋद्धि सहित हैं
तेज दर्शन ज्ञान सुख युत पूज्य श्री अरिहंत हैं 

अन्वयार्थ : जिनके भामण्डल, केवलदर्शन, केवलज्ञान, ऋद्धि, अतीन्द्रिय सुख, ईश्वरता, तीन लोक में प्रधान देव आदि माहात्म्य हैं; वे अरहंत भगवान हैं 


गाथा -72 (आचार्य जयसेन की टीका अनुसार )
तं गुणदो अधिगदरं अविच्छिदं मणुवदेवपदिभावं / /
अपुणब्भावणिबद्धं पणमामि पुणो पुणो सिद्धं // //


हो नमन बारम्बार सुरनरनाथ पद से रहित जो
अपुनर्भावी सिद्धगण गुण से अधिक भव रहित जो 
अन्वयार्थ : उन गुणों से परिपूर्ण, मनुष्य व देवों के स्वामित्व से रहित, अपुनर्भाव निबद्ध-मोक्ष स्वरूप सिद्ध भगवान को बारंबार प्रणाम करता हूँ 



मुनि श्री प्रणम्य सागर जी  प्रवचनसार गाथा - 

गाथा  में आचार्य कुंदकुंद देव मध्यम मंगलाचरण करते हुए पुनः नमस्कार कर रहे हैं और अरिहंत भगवान के लक्षण का वर्णन कर रहे हैं।
* जिनके पास तेज होता है,जिनके पास *अनंत दर्शन और ज्ञान है, समोशरण का वैभव है,अतींद्रिय (अव्याबाध) सुख है,देवों द्वारा अद्भुत अतिशय होते हैं, एवं तीन लोक के सभी प्रधान पुरुष उनको अपना इष्ट मानते हैं। *

गाथा  में आचार्य भगवन कहते हैं कि जिनकी आत्मा के पूर्ण गुण खिल गए हैं,ऐसे सिद्ध भगवान को बारमबार नमस्कार हो।


Manish Jain Luhadia 
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