प्रवचनसारः गाथा - तप और संयम से सिद्ध हुए ही शुद्ध है|
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श्रीमत्कुन्दकुन्दाचार्यविरचितः प्रवचनसारः
आचार्य कुन्दकुन्द विरचित
प्रवचनसार

गाथा -84 (आचार्य जयसेन की टीका अनुसार )


तवसंजमप्पसिद्धो सुद्धो सग्गापवग्गमग्गकरो ।
अमरासुरिंदमहिदो देवो सो लोयसिहरत्थो॥ ८४ ॥

अन्वयार्थ- (तवसंजमप्पसिद्धो) जो तप और संयम से प्रसिद्ध (सुद्धो) दोष रहित हैं (सग्गापवग्गमग्गकरो) स्वर्ग और मोक्ष को देने वाले हैं (अमरासुरिंदमहिदो ) देव और असुरों के इंद्रों से पूजित है (देवो) देव हैं (सो) वह (लोयसिहरत्थो) लोक के शिखर पर स्थित है।

गाथा -85 (आचार्य जयसेन की टीका अनुसार )
तं देवदेवदेवं जदिवरवसहं गुरुं तिलोयस्स।
पणमंति जे मणुस्सा ते सोक्खं अक्ख्यं जंति॥ ८५ ॥

अन्वयार्थ - (तं) उन (देवदेवदेवं) देवों के इन्द्रों के भी आराध्या (जदिवरवसहं) यतिवरों में श्रेष्ठ (तिलोयस्स) तीन लोक के (गुरुं) गुरु को (जे मणुस्सा) जो मनुष्य (पणमंति) प्रणाम करते हैं (ते) वे (अक्खयं) अक्षय (सुखं) सुख को (जंति) प्राप्त करते हैं।


मुनि श्री प्रणम्य सागर जी  प्रवचनसार


Manish Jain Luhadia 
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