Mithyatama Gunsthan (मिथ्यात्व गुणस्थान) II
#1

मिथ्यात्व गुण स्थान

आत्मा के परिणाम दर्शनमोहनीय और चरित्रमोहनीय के उदय से बनते है! दर्शनमोहनीय के तीन भेद; मिथ्यात्व,सम्यकमिथ्यात्व और सम्यकप्रकृति है!जब दर्शनमोहनीय की मिथ्यात्वप्रकृति का जीव के उदय होने के कारण,जीवादि सात तत्वों और नव पदार्थों पर यथार्थ श्रद्धांन नहीं होता ,वह जीव मिथ्यात्व गुणस्थान का/मिथ्यादृष्टि जीव कहलाता है!जब तक तीव्र मिथ्यात्व का जीव के उदय रहता है तब तक जीव की धर्म में रूचि नहीं रहती!जीव का मिथ्यात्व का उदय कम होने पर,सच्चे गुरु के सानिध्य में,उपदेश के द्वारा सात तत्वों और नव पदार्थों को जानकार,उनमे दृढ श्रद्धांन होने लगता है तब उसका मिथ्यात्व दूर होता है!अत: मिथ्यात्व गुणस्थान मे मिथ्यात्वप्रकृति के उदय से सात तत्वों, नव पदार्थों का श्रद्धान,आत्मा और शरीर के अलग-अलग होने का भेद ज्ञान,सच्चे देव,शास्त्र,गुरु का स्वरुप और उसका यथार्थ श्रद्धान,स्वयं की आत्मा का परिचय आदि नहीं हो पाता है!

लोक में जीवों की संख्या गुणस्थानों की अपेक्षा:

सबसे अधिक जीव मिथात्व गुणस्थान में पाए जाते है!संसार में अनंतानंत जीव है,उनमे अनंतानंत निगोदिया जीव मिथ्यादृष्टि ही है,उनमे एकेंद्रिय होने के कारण निज/पर का विवेक नहीं होता! इसके अतिरिक्त शेष,एकेंद्रिय से पंचेन्द्रिय तक,नारकी,देवों,और मनुष्य तिर्यंच जीवों की संख्या असंख्यातासंख्यात है! इसलिए संसार के जितने भी जीव है उनका अनंत बहुभाग निगोदिया है!निगोदिया जीवों के साथ साथ समस्त स्थावर एकेंद्रिय और त्रस जीवों में द्वी से चतुरइन्द्री और असंज्ञीपंचेंद्री तक सब जीव मिथ्यात्व गुणस्थान में ही होते है!संज्ञी पंचेंद्री जीव,नारकी,तिर्यंच,मनुष्य और देव के अन्य गुणस्थान संभव है!अत: सबसे अधिक जीव,समस्त जीवों का बहुभाग मिथ्यादृष्टिपहले गुणस्थान में है! उससे कम अनंतानंत जीव सिद्ध भगवान् गुणस्थानातीत है!अनंत जीव मिथ्यादृष्टि और अनंत जीव सिद्ध भगवान् है!


हम लोग कब से मिथ्या दृष्टि है?

हम सभी ने अनंतकाल निगोद में व्यतीत करा है! निगोद से निकल कर हम यहाँ आये! हम में से अधिकांश अनादीमिथ्यादृष्टि होंगे,जिनके अनादिकाल से मिथ्यात्व है!किन्तु हम में से कुछ अनादिकाल से मिथ्यात्वी नहीं है,अनादि से मिथ्यात्वी होने के बाद कभी सम्यग्दर्शन हो गया हो,पुन: मिथ्यात्वी हो गए हों,जिसके कारण पंचमकाल में जन्म मिला हो! इसलिए मिथ्यात्व जीव दो प्रकार के है

-अनादिमिथ्यादृष्टि- जिन्हें कभी सम्यह्दर्शन नहीं हुआ और
२-सादिमिथ्यादृष्टि-जिनको एक बार सम्यग्दर्शन हो कर छूट गया !

शिक्षा -
१-गुणस्थानों को समझकर सम्यग्दृष्टि बन्ने के लिए पुरुषार्थ करना चाहिए
२-अपना गुणस्थान जानकार,उसे उठाने का प्रयास करना चाहिए!

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