सम्यक ज्ञान (Samyak Gyaan)
#1

सम्यक ज्ञान :-
जो पदार्थ जैसा है, उसे वैसे को वैसा ही जानना, न कम जानना,न अधिक जानना और न विपरीत जानना - जो ऍसा बोध कराता है,वह सम्यक ज्ञान है ।सम्यक ज्ञान व सम्यक दर्शन में अन्तर है।ज्ञान का अर्थ जानना है और दर्शन का अर्थ मानना है।बिना सम्यक दर्शन के सम्यक ज्ञान नहीं हो सकता है।
सम्यक ज्ञान के ८ भेद हैंः-
१.शब्दाचार- ग्रन्थों के शब्द मात्रा आदि का शुध्द उच्चारण।
२.अर्थाचार - समझ कर पढना, शुध्द अर्थ करना।
३.उभयाचार - अर्थ समझते हुये तथा शुध्द उच्चारण करना।
४.विनयाचार - विनय के साथ शास्त्रों को पढना ।
५.बहुमानाचार - गुरु और शास्त्रों का आदर करना।
६.उपधाताचार - धारणापूर्वक ज्ञान आराधना करना और उसे बार बार पढना,उसे कुछ नियमलेकर पढना।
७.कालाचार - आगम प्रणीत समय में ही स्वाध्याय करना-सुर्य ग्रहण ,चन्द्र ग्रहण,दाह क्रियाआदि अयोग्य कालों में शास्त्र नहीं पढना।
८.अनिन्हवाचार - जिस गुरु,शास्त्र से ज्ञान प्राप्त किया है,उसका नाम नहीं छिपाना ।
Reply


Forum Jump:


Users browsing this thread: 1 Guest(s)