सामायिक विधि (samaayak vidhi)
#1

सामायिक विधि - सामायिक में पांचों पापों और खोटे विचारों का त्याग कर,कोलाहल रहित एकांत स्थान पर,मन को एकाग्रचित कर पूर्व अथवा उत्तर दिशा की ऒर मुख करके खड़े होते है!
१-  मान लीजिये आप पूर्व दिशा की ऒर मुख करके खड़े होते है! नव बार णमोकार मन्त्र पढ़े! फिर नमोस्तु करे –
नमोस्तु में तीन बार आवर्त करते हुए, मन मे चिंतवन करते हुए,पूर्व दिशा के समस्त सिद्ध क्षेत्रों,निर्वाण क्षेत्रों, उनमे विराजमान पञ्चपरमेष्ठीयों ,जिन प्रतिमाये और जिनालयों की वंदना भक्ति भाव से मस्तक झुका कर करे! आवर्त दोनों हाथ को जोड़कर clock wise दिशा में घूमाते है!फिर एक नमोस्तु मस्तक झुकाकर करते है!
२- अब आप खड़े-खड़े दक्षिण दिशा की ऒर मुह करते हुए घूम जाए! नव बार नवकार मन्त्र का पाठ करे,तथा पूर्व दिशा की भांति दक्षिण दिशा के समस्त सिद्ध क्षेत्रों,निर्वाण क्षेत्रों,विराजमान पञ्चपरमेष्ठीयों जिन प्रतिमाओं और जिनालयों की तीन बार आवर्त कर मस्तक झुकाकर एक बार नमोस्तु करे
३-इसी प्रकार खड़े- खड़े पश्चिम दिशा की ऒर मुख कर नव बार णमो कार मन्त्र का पाठ कर , वंदना और नमोस्तु करे ! फिर उत्तर दिशा की ऒर खड़े खड़े मुख करते हुए घूम कर  णमो कार मन्त्र का पाठ कर वंदना और नमोस्तु करे!
चारो दिशों में नवकार मन्त्र का पाठ ,वंदना और नमोस्तु करने के बाद आप उत्तर या पूर्व दिशा की ऒर मुख करके सुखासन,पद्मासन ,अर्ध पद्मासनं ,किसी भी सुविधाजनक आसन्न मे बैठ कर संकल्प ले की आप २ घड़ी(४८ मिनट)तक सामयिक करेंगे! इसमें आप स्व आत्मा का पुन:पुन:चिंतवन,शास्त्रों में बताये गए,आत्मा के स्वरुप के अनुसार करे!अपने आत्मा के गुणों,वर्तमान में उसके आकार,उसकी अवस्था कैसी है?वह क्या करती है?क्या करके वह क्या भोगती है?इस का चिंतवन आप मन ही मन करे!
आप इसमें सामायिक, आलोचना पाठ पढ़ सकते है! अपने नित्य किये गए दोषों को मिथ्या होने की भगवान् से प्रार्थना कर सकते है,उन्हें दूर करने के लिए प्रार्थना कर सकते है!आप,मेरी भावना,वैराग्य भावना का चिंतवन,१२ भावनाओं का पाठ भी, ४८ मिनट तक निरंतर चिंतवन, सामायिक मे कर सकते है!
इस समय विकल्प मस्तिष्क में नहीं आने चाहिए!फोन ,मोबाइल,मिलने जुलने आदि सबसे दूर,एकांत स्थान में सामायिक करी जाती है!इसीलिए सामायिक काल काल प्रात::सूर्योदय से पूर्व रखा है!दोपहर और सांय कालीन सामायिक भी कोलाहल रहित शांत वातावरण में करनी चाहिए!
समायिक शिक्षा व्रती को सामयिकी ३ बार प्रति दिन करनी होती है यदि नहीं कर सके तो २ बार तो करनी ही है! सामायिक करने से अपने स्वरुप का निरंतर भान रहता है! मै कौन हूँ?मुझे इस जन्म में क्या करना है? मेरा लक्ष्य क्या है?स्वयं की आलोचना करने से अपनी गलतियों का पता लगता है जिससे उन्हें सुधारा जा सके!भगवान् की वन्न करने से उन जैसा बनने की प्रेरणा मिलती है!
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#2

good information. please explain the darshan procedure also. Thanks
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