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श्रावक - षट आवश्यक क्रिया - Printable Version

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श्रावक - षट आवश्यक क्रिया - scjain - 04-02-2016

 श्रावक - षट आवश्यक क्रिया 

जिनको अवश्य ही करना होता है वे आवश्यक क्रियाएं कहलाती है।
श्रावक के छे आवश्यक क्रियाएं 
१. देवपूजा २. गुरुपास्ति ३. स्वाध्याय ४. संयम ५. तप ६. दान

१. देवपूजा -
जिनेन्द्र भगवान के चरणों की पूजा सभी दुःखोंका नाश करने वाली है। 
और सभी मनोरथोंको सफल करने वाली है। अतः श्रावक को प्रतिदिन 
देवपूजा अवश्य करनी चाहिए। देवपूजा अष्टद्रवोंसे करते है !
# जल , चन्दन,अक्षत ,पुष्प ,नैवैद्य , दिप , धुप , फल ये अष्टद्रव्य है। #
२. गुरुपास्ति -
जिनेन्द्र भगवान के पूजा के बाद निर्ग्रन्थ दिगंबर मुनियोंके पास जाकर 
उन्हें भक्ति से नमोस्तु करके उनकी स्तुति करके अष्टद्रवोंसे पूर्ववत 
पूजा करनी चाहिए। 
उनके मुखसे धर्मोपदेश सुनना चाहिए। 
यदि अष्टद्रवोंसे पूजा न कर सके तो अक्षत , फलादि चढ़कर नमस्कार 
करना चाहिए।
३. स्वाध्याय
अपने बुद्धि के अनुसार जैन शास्त्रोंको पढ़ना या पढ़ाना स्वाध्याय 
कहलाता है।
४. संयम 
छकाय के जीवोंकी दया करना एवं पांच इन्द्रिय और मन को वश 
करना संयम कहलाता है। 
श्रावक अपनी योग्यता अनुसार त्रस जीवोंकी दया करके तथा 
व्यर्थ में स्थावर जीवोंका वध ना करे और यथा शक्य अपने 
इंद्रिय और मन पर नियंत्रण करे !
५. तप -
अपने शक्ति अनुसार अनशन आदि बारह प्रकारके तपोंको भी 
धारण करे !
नन्दीश्वर के आठ दिन में उपवास या एकाशन करना। 
अष्टमी चतुर्दशी उपवास या एकाशन तथा कर्मदहन 
उपवास आदि सभी व्रत तप में शामिल है।
६. दान -
गृहस्थ के छे क्रियोंमे दान महांक्रिया कहलाती है। 
स्व और पर के अनुग्रह के लिए अपना धन आदि वस्तु देना 
दान कहलाता है !
आचार्य कुंदकुंद देव ने कहा है
" दानं पूजा मुक्खो सावय धम्मो ण सावया तेण विणा "
अर्थात श्रावक के धर्म में पूजा और दान ये दो क्रियाएं मुख्य है। 
इन के बिना गृहस्थ श्रावक नहीं हो सकता है !
गणिनी ज्ञानमती माताजी